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अग्नि वैकारिकी
६७१ ८. सुश्रुत के मत से वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक, सान्निपातिक, शोकजन्य और आमजन्य ये ६ अतीसार के प्रकार होते हैं इसी को कई शास्त्रकार कई प्रकार वाला भी बतलाते हैं जिसे काशिराज स्वीकार नहीं करते। दोषावस्थानुसार समय समय पर अतीसार के विविध रूप देखे जाते हैं। एक ही प्रकार के अतीसार में आमावस्था, पक्वावस्था और रक्तातीसारावस्था ये तीन अवस्थाएँ बना करती हैं वास्तव में मूल प्रकार दोषानुसार ही रहते हैं। या यों कहिए कि
अतीसारः पटप्रकार एव, याश्च आमपक्क रक्तान्यदोषानुबन्धाद्यास्तत्रानेकप्रकारा अवस्थास्ता दोषाणामेवेत्यर्थः-टल्हणः।
९. हारीत ने इन्हीं तथ्यों को अपने रूप में रखते हुए लिखा है कि व्यक्ति दुर्बल हो, विषमतया भोजन कर चुका हो तो उसे अजीर्ण हो जाता है जिसके कारण मल अपक्क रह जाता है, जो जल के साथ मिल कर अग्नि को नष्ट कर देता है । इस प्रकार उदर की अग्नि के शान्त होने के कारण मनुष्य को अतीसारोत्पत्ति हो जाती है।
५०. वाग्भट कहता है कि अतीसार का प्रधान कारण अत्यधिक जल पीना है। कृशशुप्कामिष, असात्म्य, तिल, पिष्ट, विरूढक, मद्य, रुक्षान्न, अतिमात्राहार, अर्श, स्नेह विभ्रम, कृमि, वेगरोध आदि कारणों से वातदोष प्रकुपित होता है । वह अब्धातु को नीचे की ओर खींचता है और जाठराग्नि को नष्ट कर देता है। यह अब्धातु मलाशय के पास तक आ जाती है और वहाँ पर स्थित पुरीप को पतला बना देती है।
११. चरक और वाग्भट दोनों ने ही यह भी माना है कि व्यक्ति के शरीर में आहार के विदग्ध होने के कारण बढ़े हुए दोष अतीसारोत्पत्ति में कारण होते हैं।
संक्षेप में हम इतना कह सकते हैं कि बार-बार पतले दस्तों का होना आयुर्वेदिक परिभाषा में अतीसार कहलाता है। पतला दस्त यानी पानी ( अब्धातु) से युक्त मल है। साधारणतया मल एक विशिष्ट आकार का केले को गैर के समान बनता है। विभिन्न प्राणियों में उसकी आकृति भिन्न भिन्न होती है। अजाशकृत् जहाँ गन्धक वटी गोली से कुछ बड़ा होता है वहाँ ऊँट का शकृत् या अश्वशकृत् विशिष्टाकार में गोल गेंदों जैसा मिलता है। पर शकृत् की यह आकृति अधिक जल मिलने से बिगड़ जाती है । यह जल अब्धातु कहा गया है। धातुरूप जल अर्थात् वह पोषक जल जो शरीर में बल का कारण होता है। आँतों की प्राचीरों के द्वारा इसका अतिमात्रा में उत्सर्जन तभी होना सम्भव है जब पेट में पाचन क्रिया शिथिल पड़ गई हो और वह अग्नि सर्वथा शान्त हो गई हो जिसके कारण आत में आया हुआ जलीयांश प्रचूषित हो जाता है। अग्नि के मन्द हो जाने के कारण आँतों की प्राचीरों का भी जलीयांश आँतों में एकत्र होकर मल को पतला करने में सहायक होता है। अजीर्ण या अग्नि की मन्दता का उत्तररूप दस्त के पतले होने में प्रकट होता है। यह पतला मल एक बार नहीं अनेक बार जो निकलता है उसमें मुख्य कारण वायु है। वायु आँतों की क्रिया को अनियमित कर देता है। इसके कारण बार-बार व्यक्ति को मलत्याग करने को बाध्य
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