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विकृतिविज्ञान होता है । ये लक्षण एक साधारण वातनाडीय शोथ ( neuritis ) के कारण होते हैं तथा इनके सौषुम्निक विक्षतों से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
११. रोग के भावेगकाल ( exacerbation) में जो रक्तचित्र होता है वह बाद में कोई खास परिवर्तन नहीं किया करता। एक तीवस्वरूप के घातक रक्तक्षय में रक्तचित्र निम्नलिखित होता है:
अ-रक्त के सब तत्व संख्या में घट जाते हैं
(i) रुधिराणु की संख्या अधिक गम्भीर रोगियों में १०,००००० या उससे भी कम प्रतिघन मिलीमीटर रह जाती है। जिस रक्तक्षय में रुधिराणु बीस लाख से कम हो उसको घातक रक्तक्षय का लक्षण समझा जा सकता है पर ऐसा अन्य रक्तक्षयों में भी मिल सकता है।
(ii) उपशमकाल में यह संख्या ४० लाख तक चली जाती है।
(iii) शोणवर्तुलि भी इस रोग में कम हो जाती है पर यह कमी अनुपात में में नहीं होती इसकारण रंगदेशना सदैव १ से ऊपर रहा करती है। कभी कभी १.५ तक पहुँच सकती है।
(iv) अधिकतर रुधिराणु खूब रंगे हुए होते हैं इसी कारण उन्हें परमवर्णिक ( hyperchromic ) संज्ञा से अभिभूत किया गया है।
(v) परमवर्णता से भी बढ़कर इस रोग में रुधिराणु की आकारवृद्धि होती है। यतः अस्थिमज्जा में बृहद्रक्तरुहीय ( megaloblastic ) परिवर्तन इस रोग में देखे जाते हैं जिनके कारण बृहद्रक्तकोशीय ( megalocytic) परिवर्तन रक्त के अन्दर देखने में आते हैं जिनका परिणाम रक्त के लाल कणों की स्थूलकायता ( macro. cytes) में होता है। इस रोग में रुधिराणु अपने प्रकृत आकार से सदैव बड़े होते हैं। प्राइसजोन्स का कहना है कि लालकण का प्रकृत आकार ७॥ अणुम ( micron ) से ८॥ अणुम तक चला जाता है। ६ से ९ अणुम के प्रकृत परिवर्तन के स्थान पर यहाँ ४ से १२ अणुम के बीच में आकार परिवर्तन देखा जाता है । जिसके कारण कितने ही रक्तकोशा प्रकृत लाल कणों से छोटे होते हैं। इसे असमतोत्कर्ष (anisocytosis) कह सकते हैं । ये छोटे कण रंग में भी हलके होते हैं।
(vi) रुधिराणुओं के रूप में भी परिवर्तन जिसे विरूपतोष्कर्ष ( poikilocy. tosis ) कहते हैं, पाया जा सकता है। इसके कारण रुधिराणुओं का तरह तरह का रूप हो जाता है। उनका आकार बहुत बदल जाता है।
घातक रक्तक्षय की प्रवृत्ति लालकण को उसके भ्रोणरूप (embryonic form) में बदलने की रहती है क्योंकि इस रोग का मुख्य भाव ही यह है कि अस्थिमज्जा के लालकों में शीघ्रता से पूर्ण प्रगल्भ होने की क्षमता का अभाव हो जाय । मज्जा की बृहदक्तरुहीय ( megaloblastic ) प्रतिक्रिया तथा रक्तक्षय का स्थूल कोशीय
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