________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६३४
विकृतिविज्ञान दात्रकोशीय रक्तक्षय में निम्नलिखित लक्षण मिला करते हैं१. रक्तक्षय तथा पांडु की उपस्थिति रहती है। २. अस्थियों तथा अस्थिसन्धियों में शूल रहता है। एक्सरे से अस्थिसुषिरता
( osteo porosis ) पाई जाती है । ३. शोणांशिक कामला मृदु स्वरूप का पाया जाता है। ४. ज्वर समय समय पर बढ़ा करता है। ५. प्लीहाभिवृद्धि हुई रहती है।
इस रोग में प्लीहोच्छेद से कोई लाभ नहीं हुआ करता। साथ ही रोगी के रक्त का चित्र भी सदैव एक समान नहीं रहा करता है। कभी कभी रक्तक्षय बहुत प्रबल हो जाता है। रक्तकणों में असमतोत्कर्ष (anisocytosis) तथा बहुवर्णता ( polychromasia ) पाई जाती है। सितकोशोत्कर्ष पाया जाता है। सितकोशाओं में बृहद्रतकोशा मिलते हैं ऋजुरुह पर्याप्त होते हैं तथा जालकीय कोशीय गणन पर्याप्त उच्च रहता है।
शिशुओं तथा नवजातों के रक्तक्षय शोणरहोत्कर्ष शैशवीय-नवजात शिशु में प्रायः मिलने वाला पर गम्भीर स्वरूप का जो रक्तक्षय पाया जाता है वह शैशवीय शोणरुहोत्कर्ष ( erythroblastosis foetalis) के साथ मिलती है। यह अवस्था गर्भाशय में भी भ्रूण को कष्ट पहुँचा सकती है तथा कभी कभी शिशु के जन्म लेने के बाद तक अपना रूप प्रगट नहीं करती। यह एक प्रकार का गम्भीर स्वरूप का रक्तक्षय होता है जो परमवर्णिक अथवा सूक्ष्मवर्णिक किसी भी प्रकार का हो सकता है। इस रोग में रक्तस्राव की दुर्दमनीय प्रवृत्ति अन्त्र या अन्य श्लेष्मलकला से होती हुई देखी जाती है। इन रक्तस्रावों के रोकने का एकमात्र साधन रक्तावसेचन ही होता है। इस रोग के साथ साथ शोणांशिक पाण्डु भी मिल सकता है जिसके कारण जन्म के समय जो शिशु के शरीर पर लेप (vernix caseosa) चढ़ा होता है वह सुनहरी रंग का होता है।
इस रोग के तीन रूप देखे जा सकते हैं:
१. शैशवीय सहजोदकता ( congenital hydrops foetalis ) इस अवस्था में मृतगर्भ (still birth) का जन्म होता है तथा उसकी सम्पूर्ण लस्यगुहाओं में शोफीय तरल भरा हुआ होता है। यकृत् परिवृद्ध होता है इसके स्रोतसाभों में सक्रिय रक्तसंजननक्रिया चलती हुई पाई जाती है। अपरा प्रकृत आकार से बड़ा और शोथयुक्त होता है।
२. नवजातीय गम्भीर कामला (icterus gravis neonatorum)इसमें जन्म के समय या उसके थोड़े समय बाद बालक को गहरा शोगांशिक रक्तक्षय पाया जाता है। जिसके कारण जीवन के प्रथम सप्ताह में ही प्रायः बालक कालकवलित
For Private and Personal Use Only