________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रुधिर वैकारिकी
६०३ इस तत्व के दोनों घटकों की कमी या उनके या इस तत्व के प्रचूषण के अभाव के कारण अथवा यकृत् में सञ्चय न हो सकने या अस्थिमज्जा के द्वारा उपयोगकारी शक्ति के अभाव से जो विविध रक्तक्षय आ उपस्थित होते हैं उनका स्पष्ट ज्ञान सैकि लीय निम्न तालिका से मिल जाता है: -
बाह्यकारक
(आहार)
। उष्ण कटिबन्धीय पोषणिक रक्त
क्षयमें इसका अभाव हो जाता है। तक्षयान्तक या रक्कोत्पत्तिकर तत्व ।
घातक रक्तक्षय में या आमाशयोच्छेदकर्म के पश्चात् इसका अभाव हो जाता है।
आभ्यन्तरकारक(आमाशय)
आन्त्रद्वारा प्रचूषण-->
स्नेहयुक्त अतीसार, जीर्ण ग्रहणी, आन्त्र में ह्रस्वपरिपथ ( short circuit in bowel) faraa द्विनालशिरकृमि ( diphyllobothrium latum) के उपसर्गों में अभाव हो जाता है।
यकृत् में सञ्चिति--->
यकृद्दाल्युत्कर्ष में अभाव हो जाता है।
अस्थिमज्जाद्वारा उपयोग→
अमज्जकीय रक्तक्षय में इसका उपयोग बन्द हो जाता है।
अतः स्पष्ट है कि ग्रहणी में रक्तक्षय का कारण आन्त्रिक श्लैष्मिककला की अपुष्टि के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति में रक्तोत्पत्तिकर तत्व के प्रचूषण का अभाव और उसके कारण उत्तरोत्तर इस द्रव्य का अस्थिमज्जा के लिए अभाव होने से रक्तचित्र में घातक रक्तक्षय के सादृश्य का होना होता है। इसमें रंगदेशना १ से ऊपर चली जाती है। रक्त में जो लालकण देखे जाते हैं उनमें अनेक बृहद्रक्तकोशा (मैगालो साइटस) होते हैं जिनकी आकृति तथा रूप में विकृति होने के कारण असमतोत्कर्ष (anisocytosis) तथा विरूपोत्कर्ष (poikilocytosis) पाई जाती है। प्राइसजोन्सवक्र भी इसमें घातक रक्तक्षय जैसा ही होता है। साथ में बहुवर्णता ( polychromasia ) क्षारप्रिय सिध्मन ( basophilic stippling ) तथा कभीकभी ऋजुरुहों की उपस्थिति देखी जा सकती है।
For Private and Personal Use Only