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रुधिर वैकारिकी (pentnucleotide ) का प्रयोग इसे साध्य बना देता है। यह ओषधि अस्थिमज्जा को उत्तेजित करके कणात्मक कोशाओं के निर्माण के लिए आवश्यक नवजीवन प्रदान करनेवाली सिद्ध हुई है।
अरक्तता, अल्परक्तता या रक्तक्षय
(Anaemia) रक्त के मुख्य घटक रुधिराणु (red blood corpuscle ) में किसी भी प्रकार का विकार आने पर शरीर में जो विविध लक्षणोत्पत्ति होती है उसी को अरक्तता, अल्परक्तता या रक्तक्षय के नाम से चिकित्सक पुकारते आये हैं। एनीमिया अन तथा ईमिया दो शब्दों से बना है। अन का अर्थ अल्पता या सर्वथा अभाव तथा ईमिया हीमिया का रूप है जिसे रक्तता कहा जाता है। अस्तु एनीमिया और अ या अल्परक्तता एक दूसरे के पर्याय हैं। रक्तक्षय एक अन्य प्रचलित शब्द है। रक्तधातु का जब क्रमानुक्रम से क्षय होने लगता है तो जो अवस्था उत्पन्न होती है वह रक्तक्षय कहलाती है। इसमें त्वचा की विवर्णता, श्रम करने से थकावट और परिश्रम से श्वासकृच्छ्रता पाई जाती है। रोगी का हृदय धकधक करता हुआ उसे प्रतीत होता है। इन सामान्य लक्षणों के अतिरिक्त कामला, मूर्छा, श्लेष्मलकलाओं में कहीं से भी रक्तस्राव, हृच्छूल, अग्निनाश, विबन्ध या अतीसार, स्त्रियों के रजोधर्म में खराबी आदि सहलक्षण भी थोड़े बहुत मिल सकते हैं। सामान्यतया रुधिराणुओं का रूप, आकार और अभिरंजना शक्ति इस रोग में विकृत हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उपरोक्तलक्षण समूह प्रगट हुआ करता है । रुधिराणुओं का निर्माण जिन शरीरस्थ वर्कशापों में होता है जब तक उनमें कोई गड़बड़ी नहीं है तब तक रुधिराणुओं में खराबी आना प्रायः सम्भव नहीं है अतः रुधिराणुजन्य विकृतियों का वर्णन इन वर्कशापों की विकृति का ही वर्णन हो सकता है। यह स्मरणीय है कि रक्तक्षय में रक्त के सितकोशा ( leucocytes ) में कोई खास परिवर्तन नहीं मिला करता। इसी अध्याय के आरम्भ में हम रुधिराणुओं की उत्पत्ति की कथा आद्योपान्त प्रस्तुत कर चुके हैं और अब हम मानवसमाज की शक्ति का हाम करके उसकी श्रमजननशक्ति को कम करके मनुष्य की सामर्थ्य को घटाने में प्रमुख हेतुस्वरूप इस रोग का संक्षिप्त वर्णन उपस्थित करना आवश्यक समझते हैं।
रक्त के निर्माण में बाधा पड़ने से जहाँ रक्तक्षय हो सकता है वहाँ रक्त के बाहर बह जाने के कारणों से भी रक्तक्षय सम्भव है। प्राचीन आचार्यों ने रक्तपित्त के प्रकरण में जो उसके पूर्वरूप रूप या उपद्रव लिखे हैं वे आधुनिकों द्वारा व्यक्त लक्षणादि कथन के लिए सहायता कर सकते हैं । यथा___ तस्येमानि पूर्वरूपागि भवन्ति। तद्यथा – अनन्नामिलापो भुकस्य विदाहः शुक्ताम्लगन्धरस उद्गारश्ट भोशागमनं छर्दितस्य बोभत्सता सर-दो गात्राणां सदनं परिदाहो मूग्वाळूमाम इव लोइलोहितमस्यामगन्वित्वमिव चास्यस्य रक्तहतिहारिद्रत्वमङ्गावयवशकृन्मूत्रस्वेदलालाति
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