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रुधिर वैकारिकी
८८५ आधुनिक युग में इस व्याधि का हेतु मुख्यतः अँगरेजी दवाइयों का अन्धाधुन्ध प्रयोग है । विशेष करके बेंजीनरिंग (धूपेन्य वलय) द्वारा निर्मित पदार्थों का प्रयोग जिनमें पाइरामीडोनवर्ग (pyramidon group ) की ओषधियाँ मुख्य हैं। एमीडोपाइरीन, एस्पिरीन, बार्बीट्यूरेट्स, सल्फोनमाइड तथा सल्फावर्ग के द्रव्यों का अतिशय प्रयोग या उन व्यक्तियों द्वारा इनका अतिशय प्रयोग जिन्हें उनके प्रति अतिहृषता में होती है अकणकायाणूत्कर्ष देखा जाता है।
फिरंग से पीडित व्यक्तियों को जब आर्सनिक द्रव्यों के सूचीवेध दिये जाते हैं तो उन्हें भी अतिहपता के कारण यह व्याधि हो जा सकती है।
ब्वायड का कथन है कि अकणकायाणूत्कर्ष या अकण मुखपाक एक सर्वथा नूतन रोग है यथा-Agranulocytosis, specially agrnanulocytic angina is new disease, for the first time was reported by Schulty in 1922 and the steady increase in the number of cases corres. ponds with the increase in the consumption of drugs containing the benzene ring. ____इस रोग की उत्पत्ति में जहाँ ओषधियों के द्वारा अनुहृषता या शरीर का विषाक्त होना प्रमाण है वहाँ रोगकारक जीवाणुओं के द्वारा उत्पन्न विष भो कणीयसितकोशाओं को नष्ट करने में समर्थ हो सकते हैं। ऐसा पता चल चुका है कि कुछ पूयजनक जीवाणु एक सितकणनाशकतत्व (leucocidin) उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं यह तत्व सितकोशाओं को नष्ट कर देता है विशेष करके कणात्मक कोशाओं पर उसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता है । पूयजनक जीवाणुओं में स्वर्णगुच्छ गोलाणु (staphylo. coccus aureus), शोणांशी मालागोलाणु (streptococcus haemolyticus) तथा शोणहरित मालागोलाणु (streptococcus viridans) इस सितकोशानाशक कार्य में सक्रिय भाग लेते हैं । डैनिस ने शोणहरित मालागोलाणु को एक प्रकार के ग्रावरों (कैपसूल्स ) में बन्द करके शरीर की ऊति में वे प्रावर रख दिये। कुछ काल पश्चात् एक प्रसरणशील विषि उसमें से उत्पन्न हुई जो परीक्षण करने पर सितकोशा को नाश करने में पूर्ण समर्थ पाई गई। उस पदार्थ को जब सितकोशाओं के सम्पर्क में रखा गया तो बह्वाकारी सितकोशा एक एक कर विघटित होने लगे जब कि लसीकोशा अप्रभावित रहे जो यह प्रकट करता है कि इन जीवाणुओं से जो विष निकलता है वह कणात्मक सितकोशाओं का ही संहार कर सकता है। उपर्युक्त पूयजनक जीवाणुओं से जो जो रोग हुआ करते हैं उन सभी में अकणकायाणूत्कर्ष पाया जा सकता है । इसी कारण श्वसनक (न्यूमोनिया) में यह मिलता है। एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि आन्त्रिक ज्वर में सितकोशापकर्ष रहने पर भी अकणकायाणूत्कर्ष नहीं पाया जाता है।
इस प्रकार हमने ओषधिप्रभावजन्य अकणकायाणूत्कर्ष तथा जीवाणुजन्य अकण
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