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विकृतिविज्ञान
आतञ्च या समूह निर्माण करते हैं इस पर रक्तावसादन की गति निर्भर रहती है और समूह या आतञ्चक निर्माण रक्त में उपस्थित तन्त्विजन की मात्रा पर निर्भर रहता है 1 अवसादन की गति गर्भावस्था में स्त्रियों में बढ़ जाती है ।
वैस्रग्रीन की पद्धति का अनुसरण करने पर पुरुषों में स्वस्थावस्था में अवसादन गति ३ मिलीमीटर प्रति घण्टा रहनी चाहिए । स्त्रियों में १० मिलीमीटर प्रति घण्टा तक स्वस्थावस्था में होती है। पुरुषों में ८ मि. मी. प्रति घण्टा तक सन्देहात्मक ( doubtful ) परिस्थिति का द्योतक है । ८ से १२ मि. मी. प्रति घण्टा तक शायद रोग है ऐसा आभास प्रदान करता है पर १२ मि. मी. प्रति घण्टा से ऊपर की गति स्त्री और पुरुष दोनों ही में निश्चयात्मक रूप से विकार की ओर निर्देश करती है । निम्नाङ्कित रोगों में रक्तावसादन गति बढ़ जाती है
१. राज यक्ष्मा
२. कुष्ठ
३. काला आजार
६. आमवाताभ सन्धिपाक
५. तीव्र वृक्कपाक ८. कर्कटार्बुद
४. आमवात ज्वर ७. आन्त्र के जीर्ण व्रण ९. सितरक्तता ( leukaemia )। १०. लसी या मसूरी ( vaccine ) का अन्तः क्षेपण करने के पश्चात् । ११. दुग्ध या अन्य बाह्य प्रोभूजिन का अन्तःक्षेपण करने के पश्चात् । १२. जीर्ण विषरक्तावस्था ( chronic toxaemia )।
निम्न रोगों में रक्तावसादन गति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा करता१. श्वग्रह या कुकरखाँसी जब वह अनुपद्रव हो ।
२. आरम्भिक उण्डुकपुच्छपाक ( early appendicitis )। निम्न रोगों में रक्तावसादन गति घट जाती है
१. अधिरक्तीय हृद्भेदावस्था ( congestive heart failure ) २. बहुकोशारक्तता ( polycythaemia )
मिलेगा ।
इस परीक्षा का विस्तृत वर्णन क्लीनीकल पैथालोजी की पुस्तकों यह परीक्षण आजकल यक्ष्मा, आमवात तथा कुष्ठ की चिकित्सा के परिणामों का नियन्त्रण करने के लिए तथा साध्यासाध्यता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है । शोणप्रसमूहिजन्य परिवर्तन - यदि एक व्यक्ति का लस (सीरम ) दूसरे वर्ग के व्यक्तियों के रुधिराणुओं के साथ मिलाया जावे तो उनमें से कुछ के रुधिराणु एक दूसरे से चिपट जावेंगे जिसे प्रसमूहन ( agglutination ) भी कहा जा सकता है । इस प्रसमूहन का ध्यान सदैव उन रोगियों में रखना पड़ता है जिन्हें अन्य व्यक्तियों का रक्त अन्तःक्षेपण द्वारा पहुँचाना परमावश्यक होता है । यदि यह रक्त व्यक्ति के अन्दर के रक्त के साथ मिलकर रुधिराणुओं का प्रसमूहन करने वाला हुआ तो रोगी की अवस्था गम्भीर हो जा सकती है और रक्तावसेचन ( transfusion of blood) का सम्पूर्ण अभिप्राय व्यर्थ हो सकता है ।
इस दृष्टि से अध्ययन करने पर जान्स्की तथा मौस ने मानवीय रक्त को ४ वर्गों में बाँट दिया है । इन दोनों विद्वानों के रक्तवर्गीकरण में भेद होने से
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