________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्बुद प्रकरण
८४५
कभी कभी अर्बुद का एक भाग मारात्मक स्वरूप धारण कर लेता है । उसे मारात्मक पेश्यर्बुद या अरेखित पेशिसङ्कटार्बुद कहा जाता है । उसकी न्यष्टियाँ अधिक बड़ी, कोशा अधिक सक्रिय और विभजनाङ्कों से युक्त मिलते हैं । इन अर्बुदों से विस्थाय कभी नहीं बना करते तथा एक बार उच्छेदित कर देने पर उनकी पुनरुत्पत्ति भी होती हुई नहीं देखी जाती ।
पेशीरुहार्बुद (myoblastoma ) — इसका थोड़ा वर्णन हम रेखितपेशीय अर्बुद के समय कर चुके हैं। इसका प्राचीनतम वर्णन सन् १९२६ का है । उसके बाद अगले ८ वर्षों में ५० और अर्बुद ऐसे देखे जा चुके हैं। इसकी उत्पत्ति के सामान्य स्थल जिह्वा, स्वरयन्त्र और त्वचा रहते हैं । इनके अतिरिक्त यह ओष्ठ, अन्नप्रणाली के ऊपरी भाग और टाँग में भी पाया जा सकता है । इसके कोशा बहुभुजीय होते हैं तथा इसमें उच्चकणीय कोशारस पाया जाता है । कणीय कोशा रस ( granular cytoplasm ) के साथ साथ पट्टिकावत् संकोशपुंज ( ribbon-like syncitial masses ) भी पाये जाते हैं । इसमें अनुप्रस्थ रेखन ( cross striation ) नहीं होता । यह भी सन्देहास्पद है कि ये अर्बुद पूर्वज पेशीरुहों द्वारा बनता है जैसा कि सर्वसाधारण मत आज प्रचलित है क्योंकि जहाँ रेखित पेशी का नाम निशान नहीं वहाँ भी ये देखे जाते हैं । दूसरे ये बिल्कुल निर्दोष होते हैं जब कि अरेखितपेशि संकटार्बुद घातक प्रकार का अर्बुद होता है ।
( ४ ) वाहिनी अर्बुद
( Angioma )
किसी भी वाहिनी के द्वारा बना अर्बुद वाहिनीय अर्बुद या वाहिन्यर्बुद कहलाता है । ये वाहिनी शोणवाहिनी या रक्तवाहिनी ( blood vessel ) भी हो सकती है और सवाहिनी (lymphatic ) भी हो सकती है । शोणवाहिनियों में अर्बुद बन जाने पर शोणवाहिन्यर्बुद ( haemangioma ) कहलाता है तथा लसवाहिनी में सवाहिन्यर्बुद (lymphangioma ) कहलाता है । केशिकाओं के अर्बुद को केशिकावाहिन्यर्बुद ( capillary angioma ) कहा जा सकता है ।
शोणवाहिन्यर्बुद ( haemangioma )
एक शोण वाहिन्यर्बुद का अर्थ रक्तवाहिनी की एक नवीन रचना | यह दो प्रकार का होता है- १. केशिकीय और २ स्रोतसीय वाहिन्यर्बुद ( cavernous angioma) केशिकीय वाहिन्यर्बुद — में नवनिर्मित रक्तपूर्ण केशालों का जल बन जाता है । अर्बुदवाहिनी एक खण्ड पर ही प्रभाव डालता है । उसी खण्ड से अन्तश्छद की कलिकाएँ उगने लगतीं तथा केशाल वा केशिकाओं का निर्माण करने लगती हैं । इस प्रकार केशिकाओं या वाहिनियों का एक बन्द संस्थान बन जाता है । एक भाग की वाहिनियों का विस्फार ( telangiectasis ) इससे सर्वथा पृथक् अवस्था का नाम है । ये केशिका उस भाग से निकलती हैं जो एक अल्पविकसित वाहिनीभाग मात्र
For Private and Personal Use Only