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विकृतिविज्ञान प्रमस्तिष्क ( सैरीब्रम) में तृतीय निलय या पार्श्व निलय के समीप उत्पन्न होता है यह थोड़ा दृढ़ होता है और क्षकिरण चित्र द्वारा इसमें चूर्णीयन मिल सकता है। ___ अण्वीक्षण करने पर इस अर्बुद में निलयस्तरीय कोशा या निलयस्तरीय छिद्रिष्ठरुह मिलते हैं । छिद्रिष्ठरुह लम्बोतरे होते हैं जिनकी पूँछ लम्बी शिशु मेंढक ( tadpole ) सरीखी होती है । निलयस्तरीय कोशा सदैव एक गुहा का आस्तरण करते हैं अतः कुछ निलयस्तरीय कोशा तुद्र कानालों के चारों ओर समूहित मिलते हैं। इन समूहों को वृत्तिका ( rosette ) कहते हैं जब ये वृत्तिकाएं उपस्थित होती हैं तो निलयस्तरार्बुद की विकृतिसूचक आकृति को बतलाती है। कोशाओं के प्ररस में सुषिरक और न्यष्टि के बीच में सुषिरक के किनारे क्षुद्र दण्डिका ( rod ) मिलती हैं ये दण्डिका ( blepharoplasten ) निलयस्तरीय कोशाओं की विशिष्टता प्रकट करती हैं। क्योंकि वे पदों ( cilia ) के आधार की अभिवर्णि ( chromatin ) के अवशिष्ट भाग की सूचिका होती हैं।
(८) रंगित अर्बुद
(Pigmented Tumours ) रंगित अर्बुदों में न्यच्छ और काल्यर्बुद इन दोनों का उल्लेख किया जाता है। न्यच्छ साधारण और काल्यर्बुद मारात्मक प्रकार का होता है। मारात्मकता के विचार में उसे मारात्मक काल्यर्बुद या काल्यर्बुदीय संकटार्बुद भी कह कर पुकारा जाता है। पर काल्यर्बुदीय संकटाबंद ऐसा प्राचीन नामकरण इस समय प्रयुक्त नहीं होता क्योंकि काल्यर्बुद संकटार्बुद नहीं होता। वर्ण का कारण कालि ( melanin ) होती है। दोनों प्रकार के अर्बुद जैसा पोछे लिख चुके हैं वातनाड्यग्रों के अर्बुद हैं। न्यच्छ से काल्यर्बुद सीधा भी बन सकता है और स्वतन्त्र भी उग सकता है। अब हम इन दोनों का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत करेंगे।
न्यच्छ ( Naevus) आयुर्वेदीय परिभाषाकारों ने इसका निम्न लक्षण किया है:महद्वा यदि वा चाल्पं श्यावं वा यदि वाऽसितम् । नीरुजं मण्डलं गात्रे न्यच्छमित्यभिधीयते ॥ __ बहुत या कम श्याव वा कृष्ण वर्ण का वेदना विरहित गात्र पर जो मण्डल उग आता है वह न्यच्छ कहलाता है। यदि यही मण्डल और अधिक कृष्ण वर्ण का होता है तो वही नीलिका कहलाने लगता है।
आधुनिक विचारकों के मत में न्यच्छ का अर्थ जन्मचिह्न ( birth mark ) होता है। और यह दो विक्षों को बतलाता है एक सवर्ण न्यच्छ (pigmented naevus ) और दूसरा त्वगीय वाहिन्यर्बुद इन दोनों को क्रमशः वातनाडीय न्यच्छ अथवा न्यच्छ तथा केशालीय न्यच्छ या नीलिका कह सकते हैं। यहाँ हम न्यच्छ शब्द का ही प्रयोग उपयुक्त मानते हैं और इस प्रकरण में उसी का उपयोग किया जावेगा।
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