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afar वैकारिकी
परमवर्णिक ( macrocytic hyperchromic ) कहा जाता है ।
रक्तरुहों ( erythroblasts ) के कोशारस की परिपक्कता के लिए, ताकि शोणवर्तुल (हीमोग्लोबीन) का निर्माण यथोचित हो सके, अयस् या लोहे की उपस्थिति परमावश्यक होती है । अयस् रक्त काया आयुर्वेदीय परिभाषा में रस का अभिरञ्जन करने के लिये आवश्यक होता है। कोशीय प्रगुणन से उसका कोई सरोकार नहीं होता। क्योंकि कोशीयप्रगुणन अयस् की कमी-बेशी पर निर्भर नहीं करता, इस कारण अयस् का अभाव होने पर भी कोशीय प्रगुणन पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता अयस् का अभाव उन्हें वर्णहीन और लघुकाय कर सकता है । वर्ण की कमी और कोशाकाया की लघुता ये दो लक्षण लोहे के अभाव से उत्पन्न रक्तक्षय में स्पष्ट दिखलाई देते हैं इसी लिए उसको लघुकायिक अल्पवर्णिक ( microcytic hypochromic ) रक्तक्षय कहा जाता है ।
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रुधिराणुओं की विकृतियाँ
रुधिराणुओं में कई प्रकार के परिवर्तन विकृतावस्था में पाये जाया करते हैं। यथा१. रुधिराणुओं की शोणवर्तुलि की मात्रा ( haemoglobin content ) के
परिवर्तन |
२. रुधिराणुओं की संख्या ( number ) में परिवर्तन,
३. रुधिराणुओं के आकार ( size ) में परिवर्तन,
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४. रुधिराणुओं के स्वरूप ( shape ) में परिवर्तन,
५. अभिरञ्जन ( staining ) सम्बन्धी परिवर्तन,
६. रक्तधारा में न्यष्टिवान् रुधिराणुओं की उपस्थितिजन्य परिवर्तन,
७. रुधिराणुओं में भंगुरता ( fragility ) जन्य परिवर्तन,
८. रुधिराणुओं का आतञ्चन ( coagulation ) जन्य परिवर्तन,
९. रक्तावसादनगति ( sedimentation rate ) जन्य परिवर्तन,
१०. शोणप्रसमूहि ( haemaglutinin ) जन्य परिवर्तन |
अब हम आगे इन्हीं १० प्रकार की विकृतियों पर संक्षिप्तरूप से विचारारम्भ करते हैं ताकि रक्तविकारों के विस्तृत विचार के समय आवश्यक सहायता प्राप्त हो सके ।
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शोणवतुलि सम्बन्धी परिवर्तन - शोणवर्तुलि एक स्फटीय ( crystallizable ), वर्तुल नामक प्रोभूजिन (प्रोटीन) तथा लोहे के एक यौगिक (हीमैटीन) के संयोग सेबना करती है । शोणवर्तुलि सदैव रुधिराणुओं में रहती हुई रक्तरस (plasma) अन्दर उत्पन्न होने वाली अम्लता को ध्वस्त करती रहती है । उसके इस कार्य के कारण अप्रत्यक्षरूप में रक्तरस में प्राङ्गारद्विजारेय ( कार्बन डाई ऑक्साइड ) को अधिक मात्रा में ग्रहण करने की सामर्थ्य में वृद्धि हो जाया करती है । रक्त को यदि सुखा लिया जावे तो उसमें ९/१० भाग शोणवर्तुल का मिल सकता है । शरीर में जितना लोहा ( अयस् ) मिलता है उसका ८० प्रतिशत शोणवर्तुलि के अन्दर पाया जाता है ।