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विकृतिविज्ञान अस्थिमज्जा में गणना में सबसे अधिक श्वेतकण पाये जाते हैं। वे रुधिराणुओं की अपेक्षा तीन गुने होते हैं। लालमज्जा में रुधिराणुओं का निर्माण मज्जा की अन्तःस्रोतसाभ केशालों के अन्तश्छदीय स्तरकोशाओं (endothelial lining cells of the intersinusoidalcapillaries of the red bone-marrow) से सूत्रिभाजक विभजन (mitotic division ) द्वारा होता है । इन जालकान्तश्छदीय कोशाओं से सर्वप्रथम शोणकोशरुह (haemocytoblasts) तैयार होते हैं। उनसे फिर प्राथमिक रुधिररुह (primary erythroblasts) बनते हैं। वे फिर विभक्त होकर द्वितीयक रुधिररुह (secondary erythroblasts) की उत्पत्ति करते हैं। उनसे आगे चलकर ऋजुरुह (normoblasts) बन जाते हैं । ऋजुरहों से जालककायाणु (reticulocyte) उत्पन्न होते हैं और तब कहीं जाकर उनसे रुधिरकायाणु या रुधिराणु ( erythrocyte) का निर्माण होता है। प्राथमिक रुधिररुह कीन्यष्टि उद्विक (vesicular) होती है । कोशा स्वयं पर्याप्त बड़े होते हैं। इनका कायाणुरस (cytoplasm) क्षारप्रिय या पीठरज्य (basophil) होता है। द्वितीय रुधिररहों में न्यष्टीला गहरी रंगी जासकती है, उसकी आकृतिभी विषम हो जाती है तथा वह आकार में कुछ छोटी भी हो जाती है। ये कोशा पुनरुत्पत्ति के अयोग्य हो जाते हैं । इन कोशाओं का चिद्रस परिपक्व हो जाता है, उसमें शोणवर्तुलि का प्राकट्य देखा जाता है। उनसे फिर ऋजुल्होत्पत्ति होती है ऋजुरुहों की न्यष्टियाँ भी विषमाकृतिक होती हैं। यह न्यष्टि जब अपजनित होने लगती है तब जालककोशाओं की जालाकृतिक न्यष्टियाँ बनती हैं । रुधिराणुओंमें न्यष्टियाँ नहीं हुआ करती । यह शरीर क्रिया विज्ञान का प्रत्येक विद्यार्थी जानता है। एक शोणकोशारुह से अनेकों रुधिराणु बना करते हैं परन्तु इस क्रिया के यथावत् चलने के लिए प्रामलकाम्ल (विटामीन सी), अवटुकासत्व ( thyroxin ) तथा रक्तक्षयान्तक या रक्ताल्पताहर तत्व (anti-anaemic factor ) का होना परमावश्यक होता है। जब इन तीनों में से किसी की उपलब्धि में अन्तर आ जाता है तो रुधिराणुओं के स्वस्थ निर्माण में बाधा पड़ जाया करती है। जब यह जालकान्तश्छदीय कोशा अपने को विभक्त करके आगे की अवस्थाओं में जाने में असमर्थ हो जाता है तब वह आकार में थोड़ा और बड़ा हो जाता है और तब उसे बृहद्रक्तरुह ( megaloblast ) कहकर पुकारा जाता है। आगे चलकर इसका कोशारस परिपक्व हो जाता है और वह शोणवर्तुलि तैयार कर देता है साथ ही उसकी न्यष्टि लुप्त हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप जो कोशा बनता है वह बृहद्रक्तकोशा ( megalocyte ) कहलाता है। यह बृहद्रक्तकोशा एक प्रकार से विकृत रुधिराणु ही होता है। यह रुधिराणु से थोड़ा बड़ा होता है। बृहद्क्तकोशा की उत्पत्ति का मुख्य कारण है रक्तक्षयान्तक द्रव्य की कमी । ये बृहद्रक्तकोशा संख्या में भी कम होते हैं। इसके कारण जो रक्तक्षय उत्पन्न होता है उसका रक्तचित्र देखने से रुधिराणुओं की संख्या में कमी तथा बृहद्रक्तकोशाओं की उपस्थिति स्पष्टतः दिखाई देती है जिनमें शोणवर्तुलि की मात्रा रधिराणुओं की अपेक्षा अधिक होती है। इसी से इस रक्तक्षय को बृहत्कायाण्विक
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