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विकृतिविज्ञान
१. बहुरूपी श्लेषरुहार्बुद (glioblastoma multitorme )
२. ताराको शार्बुद ( astrocy toma ) ३. विमज्जिरुहार्बुद ( medulloblastoma )
४. निलयस्तरार्बुद ( ependymoma )
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बहुरूपी श्लेषसहार्बुद
यह बहुत अधिक पाया जाने वाला और सबसे अधिक दुष्ट अर्बुद है । इसे छिद्रिष्ठहार्बुद बहुरूपी ( Spongioblastoma multiforme ) भी कहा जाता है । इसका कोशा छिद्रिष्टकृत ( spongioblast ) होता है । यह एक न होकर अनेक बनते हैं । यह बहुरूपता अन्य मारात्मक अर्बुदों में नहीं पाई जाती । यदि इस अर्बुद का यथोचित उपचार न किया गया तो यह मृत्यु का कारण बन जाता है । अर्बुद मृदुल, धूसर वर्णीय, अस्त व्यस्त ( ill-defined ), वाहिनीयुक्त और विहास से युक्त होता है । विहास में ऊतिनाश, रक्तस्राव और कोष्ठोत्पत्ति पाई जाती है । यह बहुत अधिक आक्रान्ता अर्बुद है । इसके केन्द्रिय भाग में विहास होने से इसके प्रावरित होने का मिथ्या आभास मिलता है । इसकी आक्रामक शक्ति के कारण शल्यविद् यह नहीं जान पाता कि अर्बुद कहाँ पर समाप्त होता है और कहाँ से ऋजु मस्तिष्क ऊति आरम्भ होती है ।
इस अर्बुद का अण्वीक्षणीय चित्र बहुत अधिक परिवर्तनीय होता है । इस अर्बुद में कोशीयता बहुत होती है और कोशा नैकरूपीय ( pleomorphic ) होते हैं जो आकार और स्वरूप में बहुत अधिक भिन्नता रखते हैं । वैसा ही अस्थि के अस्थिजनक सङ्कटार्बुद में भी देखा जाता है । इन्हीं कारणों से इसे बहुरूपी संज्ञा प्रदान की गई है । एक और श्लेषरुहार्बुद होता है जिसमें कोशाओं में एक ही प्रवर्द्ध ( process ) होती है । बहुरूपी अर्बुद में कुछ कोशा अण्डाकार कुछ नाशपाती के आकार के और कुछ लम्बोतरे होते हैं । इन्हीं के बीच बीच में अर्बुदिक महाकोशा होते हैं जिनमें कई कई यष्टियाँ होती हैं। कोशाओं के विभजनाङ्क खूब मिलते हैं । ( glia fibres ) नहीं मिलते। क्योंकि छिद्रिष्टरुह इन तन्तुओं का होता । वाहिनी अन्तश्छद में बहुधा प्रगुणन होता है । इस कारण सुषिरक कोशाओं से भर जाते हैं यह परिवर्तन तो अर्बुद के क्षेत्र के बाहर ऋजु ऊति में भी देखा जाता है । अर्बुद के चारों ओर श्लेषोत्कर्ष ( gliosis ) बहुत मिलती है ।
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इसमें श्लेष तन्तु
निर्माता नहीं वाहिनियों के
ताराकोशार्बुद
यह पहले अर्बुद को अपेक्षा कुछ साधारण होता है । क्यूशिंग के अनुसार इसका शस्त्रकर्म होने के उपरान्त रोगी की जीवनायु ६ वर्ष पर्यन्त और रहती है । बहुत से रोगी तो पूर्णतः उपचारित ऐसे लगने लगते हैं । समीप की स्वस्थ ऊति के साथ अर्बुद इतने आराम से मिल जाता है कि दोनों की भेदक रेखा का पाना बहुत कठिन कार्य हो जाता है | यह मस्तिष्क के किसी भी भाग में उत्पन्न हो सकता है । बालकों में साधारणतया निमस्तिष्क (धमिल्लक) में यह प्रकट होता है । इसमें कोष्टोत्पत्ति होती
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