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विकृतिविज्ञान यकृत् में बाहिन्यधुंद का प्रकार स्रोतसीय होता है । यह यकृत् के बहुत से क्षेत्र में प्रसरित हो जाता है । यह प्रावरित बहुत ही कम देखा जाता है। __ वृक्कमुखीय वाहिन्यर्बुद ( Angioma of the renal pelvis ) यह एक बहुत कम होने वाला अबंद है। जब वेदना विरहित रक्तमेह ( painless haematuria) होता है और जो एक स्थान विशेष पर ही दृष्टिगोचर हो तो इस अर्बुद का सन्देह किया जा सकता है। इसमें रक्तस्रावाधिक्य बहुत भीषण रूप धारण कर ले सकता है।
अस्थि में भी वाहिन्यबंद का होना बतलाया जाता है पर यह बहुत ही कम देखने में आता है और अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता।
ओष्ठ के अन्दर शोणवाहिन्यर्बुद तथा लसीकावाहिन्यर्बुद दोनों मिल सकते हैं। साधारणतया बालकों में सहज रूप में यह रोग पाया जाता है। इनके कारण ओष्ठ बहुत स्थूल हो जाता है। शोणवाहिन्यर्बुद का वर्ण आनील और लसीकावाहिन्यर्बुद वर्णहीन होता है। स्तनों में भी वाहिन्यर्बुद हो सकता है।
( ५ ) अन्तश्छदाबुद ( Endothelioma ) अन्तश्छदार्बुद नामक अर्बुद का वर्ग आज लुप्तप्राय हो रहा है। इसका यह कारण नहीं कि अन्तश्छद के अर्बुद बनते नहीं बल्कि इसलिए कि इस नाम से जो बहुत से अर्बुद लिए जाते थे वे आज अन्य नामों के द्वारा अन्य अन्य उद्गमस्थलों से उत्पन्न मान लिए गये हैं। आज भी इस नाम के साथ किन अर्बुदों को लिया जावे इसके बारे में बहुत बड़ा मतभेद है । इस मतभेद का मुख्य कारण यह है कि अन्तश्छद किसे पुकारा जावे । तथा इस अन्तश्छद का विकृतावस्थीय रूप क्या है इसका ज्ञान कैसे हो । वास्तविकता यह है कि अन्तश्छदीयकोशा अधिच्छदीय कोशाओं तथा संयोजी ऊतिकोशाओं के बीच के मार्ग का अनुसरण करते हैं। ये एक प्रकार का अन्तर्कोशीय बन्धक द्रव्य (intracellular cement substance ) उत्पन्न करते हैं जिसके कारण वे एक दूसरे से बहुत अधिक सटे होते हैं वे रज्जुओं और वेलनों (cylinders ) के रूप में उत्पन्न होते हैं जिनमें सुषिरक ( lumen ) होते हैं। इनकी न्यष्टियाँ छोटी और स्पष्ट होती हैं जिनके चारों ओर कोशाप्ररस का स्वच्छ आवरण चढ़ा होता है। इनकी तुलना में अधिच्छदीय कोशाओं में बड़ी बड़ी उद्रविक ( vesicular ) न्यष्टियाँ होती हैं और उनका कोशाप्ररस कणदार होता है।
वाहिन्यर्बुद ( angiomas ) एक प्रकार के अन्तश्छदार्बुद ही हैं। इसी प्रकार जालकान्तश्छदीय संस्थान के अन्तर्गत शोणोत्पादक ऊतियों के अर्बुद भी अन्तश्छदार्बुद के वर्ग ही में आते हैं। इनका वर्णन यथास्थान हुआ है। बहुत से अन्तश्छदा. बुंद संकटार्बुद के समान होते हैं और दोनों में भेद करना बहुत कठिन होता है। हम
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