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अर्बुद प्रकरण
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है । ये सभी अर्बुद सप्रावर होते हैं और गोल या अण्डाकार या खण्डिकायुक्त होते हैं और वे स्तन में इतस्ततः चलाये जा सकते हैं । काटने पर इनका धरातल थोड़ा उदुब्ज (convex) होता है वह अश्मोपम कर्कट की भांति न्युब्ज ( concave ) नहीं होता । इनका अधिक वर्णन हमने ग्रन्थ्यर्बुद के साथ कर दिया है वहीं पाठकों को देखना चाहिए । अस्थिगत तन्त्वर्बुद्
( Fibroma of the bone )
अस्थि का तन्खर्बुद बहुत ही कम पाया जाता है । यह सदैव पर्यस्थ के बाह्यस्तर से उत्पन्न होता है । विशेष करके ऊर्ध्वहनु अथवा पश्चनासाग्रसनी की प्राचीर में यह प्रकट होता है। वहां यह एक तान्तव पुर्वंगक बना लेता है ।
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अस्थि में तत्खर्बुद न केवल पर्यस्थ के नीचे ही बनता है अपितु मज्जकीय कानाल ( medullary_canal ) में भी केन्द्र की ओर बन सकता है । मृदु होता है तथा आगे चलकर यह सङ्कटार्बुद में परिणत हो जाता है ।
यह सदैव
स्तनगत तन्त्वर्बुद
स्तन में कभी कभी एक ऐसी वृद्धि हो जाती है जो एक ओर प्रावरित और दूसरी ओर स्तन ऊति से जुड़ी हुई देखी जाती है । जब इसमें केवल योजी ऊति मात्र ही होती है तो इसे तन्खर्बुद कहते हैं पर बहुधा इसमें ग्रन्थीक भाग भी रहने से अधिक उपयुक्त नाम तन्तुग्रन्थ्यर्बुद ( fibro-adenoma ) दिया जा सकता है । क्योंकि स्तन में तान्तव तथा ग्रन्थीक दोनों प्रकार की ऊतियों में परमचय होना स्वाभाविकतया देखा गया है ।
यह स्तनीय तन्तुग्रन्थ्यर्बुद नवयुवतियों में, जिन्हें कोई प्रसव नहीं हुआ, देखा जाता है । यह दो प्रकार का हो सकता है । एक को अन्तःकानालीय ( intra canalicular ) और दूसरे को परिकानालीय ( pericanalicular) कहते हैं । इनमें अन्तःकानालीय बहुत अधिक होता है । यह ग्रन्थ्यर्बुद उतना नहीं होता जितना कि तन्वर्बुद होता है । क्योंकि इसमें खण्डिकाओं की विशिष्ट ऊति लगी होती है । यह देखने में भींगा सा, प्रावरित तथा मृदु होता है । इसे काटने पर इसके कटे क्षेत्र में छोटे छोटे प्रणालिकाओं के क्षेत्र देखे जाते हैं जिसके कारण इसकी आकृति एक पुस्तक के पृष्ठों जैसी हो जाती है। कभी-कभी ऊति के छोटे-छोटे पुंज छोटे-छोटे स्थानों में बन्द देखे जा सकते हैं । यह प्रावरण या बन्दी पूर्णतः न होकर आंशिक होती है। जिसका अर्थ यह है कि अर्बुद एक ओर स्तनऊति के साथ मिला हुआ होता है और शेष भाग में प्रावर से युक्त होता है । अण्वीक्षण करने पर अबद्धयोजी ऊति का बहुत प्रगुणन देखा जाता है । यह खुली रचनाओं ( open structures ) वाली ऊति होती है जो प्रणालिकाओं में अन्तर्वलन ( invagination ) करती है । प्रणालिकाओं के सुधिरकों में यह बहुपादीय पुंज बना देती है जिसके कारण प्रणालिकाएँ बहुत विस्फारित हो जाती हैं । उनकी लम्बाई भी बढ़ जाती है तथा वे व्याकृष्टः
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