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विकृतिविज्ञान अतः कुछ व्यक्ति यही समझते थे कि मस्तिष्क में जो भी अर्बुद बनते हैं वे सभी श्लेष्मार्बुद ही होते हैं । अब ऐसा भ्रम करने का कोई कारण नहीं है।
ऐसा ही एक भ्रम कर्ण वा नासा में हुए पुर्वगकों के द्वारा होता रहा है जिसमें शंखास्थि या झर्झरास्थि में जीर्ण व्रणशोथ के कारण उत्पन्न कणन ऊति को श्लेष्मार्बुद का पदार्थ माना जाता रहा है। __ श्लेष्मसङ्कटार्बुद के नाम से जो अर्बुद देखे जाते हैं उनमें वास्तव में सङ्कटार्बुद के अन्दर श्लिषीय विह्रास (myxomatous degeneration) पाया जाता है।
कास्थ्य र्बुद ( Chondroma ) कंकालीय उति (skeletal tissue ) से दो प्रकार के अर्बुद बनते हैं एक कास्थ्यर्बुद जो कास्थि के द्वारा उत्पन्न होता है और दूसरा अस्थ्यर्बुद जो अस्थि से बनता है। जब वे दोनों मारात्मक रूप धारण कर लेते हैं तो वे कास्थिसंकट ( chondro-sarooma ) अथवा अस्थिसंकट (osteo-sarcoma) कहलाते हैं।
कास्थ्यर्बुद एक साधारण तथा निर्दोष प्रकार का अर्बुद होता है जो कास्थि के द्वारा बनता है। यह स्पर्श में कठिन रंग में आनील या आनीलधूसर और स्वाभाविक काचर के समान अर्द्ध पारभासक होता है। यह खण्डिकाओं में विभक्त और प्रावर से युक्त होता है । यह थोड़ा प्रत्यास्थ भी हो सकता है। ऊपर से यह चिकना होता है। इसमें बहुत थोड़ी रक्तवाहिनियाँ पाई जाती हैं। यह प्रत्यक्ष देखने से ऐसा लगता है कि मानो या तो यह एक ही अर्बुद हो अथवा कितने ही छोटे छोटे अर्बुदों को एक जगह मिलाकर एक बना दिया गया हो। इसे उसके प्रावर में से सरलतया निकाला जा सकता है।
अण्वीक्षण करने पर इसमें और काचरकास्थि में फर्क यह होता है कि इसमें कोशाओं की आकृतियाँ विविध होती हैं और वे एक एक करके विषमतया विन्यस्त होते हैं जब कि उसमें वे झुण्डों के अन्दर होते हैं। इसके अरक्तीय या वाहिनी. विहीन होने के कारण इसमें श्लिषीय बिहास बहुधा लग जाया करता है। प्रायशः यह चूर्णीयित भी हो जाया करता है।
यह अर्बुद तरुण व्यक्तियों की लम्बी अस्थियों के अस्थिशिरीय भागों (epi. physeal ends ) की कास्थियों से उत्पन्न होता है। जब अस्थि अपना बढ़ना बन्द कर देती है तभी कास्थि के द्वारा अर्बुद का निर्माण भी रुक जाता है उसके बाद अर्बुद या तो चूर्णीयित हो जाता है अथवा अस्थीयित हो जाता है। ये अर्बुद हाथपरों की अस्थियों द्वारा भी बन सकते हैं । श्रोणि या उरफलक की चपटी अस्थियों के द्वारा भी इनका निर्माण होता हुआ देखा गया है। श्रोणि के अन्दर कास्थ्यर्बुद अपना विशालकाय रूप धारण कर ले सकता है और आगे चल कर फिर वह संकटार्बुद भी बन जा सकता है।
श्रौणार्बुदों के अन्दर यद्यपि कास्थि मिल सकती है परन्तु कास्थ्यर्बुद और इसमें
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