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विकृतिविज्ञान
अवरोधात्मक कामला ( obstructive jaundice ) में यह पाया जाता है। पीले रंग का कारण पैत्तव ही होता है। इसे मधुमैहिक पीतार्बुद ( xanthoma diabeticorum ) भी कह देते हैं ।
२. पीतपट्टिका ( xanthelasma ) यह तीनों में सर्वाधिक प्रचलित प्रकार है । यह कोई वास्तविक अर्बुद थोड़े ही हुआ करता है बल्कि वर्त्मपेशियों (muscles of the eyelids ) के विहास से बनता है । यह प्रौढ पुरुषों में एक लघुकाय पीतग्रन्थक के रूप में मिलता है ।
३. बृहत्पीतार्बुद ( large xanthoma ) ये बहुत कम मिलते हैं और वे कण्डरा कंचुक ( tendon sheaths ) में पाये जाते हैं । ये महाकोशीय अर्बुदों से मिलते जुलते होते हैं ।
उपर्युक्त तीनों प्रकार के अर्बुदों का वर्ण चमकीला पीला होता है । ये योजी ऊति के कोशाओं द्वारा बनते हैं जिनके अन्दर विमेदाभ विन्दुक ( पैत्तव ) भरे रहते हैं जो उसके वर्ण को पीला और झागदार ( foamy ) बना देते हैं । इनके अतिरिक्त उनमें तन्तुरुह तथा अपद्रव्यहर महाकोशा भी होते हैं । तथा इनमें रक्त के रंगा ( pigments ) भी काफी पाये जाते हैं। किसी किसी में इन अर्बुदों में कभी कभी एक वलयाकार मुद्रिकावत् न्यष्टि रहती है जो कोशा के परिणाह में होती है। ये मुद्रिकान्यष्टियाँ बहुत सी भी हो सकती हैं। ये व्वायड के मत से अन्यत्र नहीं देखी जा सकीं ।
इन पीतार्बुदों का कारण कभी कभी तो विमेदीय चयापचय में परिवर्तन का होना माना जाता है जिसके साथ अतिपैत्तवरक्तता (hypercholesterolaemia) रहती है । कहीं कहीं अन्तःकोशीय गड़बड़ी इसे उत्पन्न करती है जिसमें जालकान्त
दीय संस्थान के कतिपय कोशा भाग लेते हैं ।
चर्मतन्त्वर्बुद ( dermato-fibroma ) - इसका यह नाम होने पर भी इसे तन्खर्बुद का वास्तविक रूप नहीं माना जा सकता । यह शाखाओं पर उत्पन्न होता है । यह लघु, कठिन, अप्रावरित प्रकार का विक्षत है जो चमड़ी ( corium ) के अन्दर बनता है । इसके कोशा कई दिशाओं में चलने वाले तर्कुरूप, विषमाकार और बड़े बड़े होते हैं । इसमें कभी तो बहुत से कोशा होते हैं और कभी श्लेषजन बहुत अधिक तथा कोशा बहुत कम होते हैं । इसका एक महत्त्व का लक्षण होता है इसका अस्पष्ट किनारा जो समीपस्थ ऊति में भरमार करता हुआ होता है। इसे देखकर काल्यर्बुद या वातनाडीय तन्त्वर्बुद का भय हो सकता है । इसमें रक्तरंगा मिल सकता है । उस अवस्था में इसे कोई कोई जरठीय सिरार्बुद ( sclerosing haemangioma ) भी कह देते हैं ।
तन्तुप्रन्ध्यर्बुद ( fibro-adenoma ) – ये स्तन में अधिकतर उत्पन्न होते हैं। ये मृदुल मांसल वृद्धि से लेकर कठिन तान्तव पुंज तक हो जा सकते हैं । मृदुल रहने पर इनमें ग्रन्थीय ऊति और कठिन होने पर तान्तव ऊति की इनमें प्रधानता रहती
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