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विकृतिविज्ञान (distorted ) हो जाती हैं। इस वृद्धि में स्तन का साधारण संधार कोई भाग नहीं लेता । समीपस्थ ऊति की खण्डिकाओं में परमचय देखा जा सकता है। __ परिकानालीय तन्तुग्रन्थ्यर्बुद अन्तःकानालीय तन्तुग्रन्थ्यर्बुद की अपेक्षा अधिक कठिन होता है। यह उतना बड़ा भी नहीं हो पाता। यह पूर्णतः प्रावरित होता है और काटने में अपने प्रावर में से सरलतया निकाला भी जा सकता है। स्पर्श करने पर इसमें विशिष्ट चलिष्णुता ( mobility ) पाई जाती है। अण्वीक्षण करने पर इसमें ग्रन्थीक और तान्तव दोनों प्रकार की उतियों का प्रगुणन पाया जाता है। नई योजी ऊति जो इस अर्बुद में बनती है वह प्रणालिकाओं के ऊपर ही होती है उनके अन्दर नहीं जाती इसी कारण इसका नाम परिकानालीय रक्खा गया है । अन्तःकानालीय की अपेक्षा यह कम क्रियाशील अर्बुद होता है। - परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ये दोनों वृद्धियाँ पृथक-पृथक होती हैं। अन्त:कानालीय वृद्धि के अन्दर कई परिकानालीय अर्बुद भी देखे या ढूँढे जा सकते हैं। दोनों में जो प्रकार अधिक होता है उसी के नाम पर नामकरण कर दिया जाया करता है।
उदरप्राचीरस्थ तन्त्वर्बुद उदरप्राचीर में उदरदण्डिका पेशी के कंचुक ( sheath ) में तन्वर्बुद या तन्तु. पट्टार्बुद ( desmoid tumour ) बनता है। यह कंचुक से निकल कर पेशी में भरमार करने लगता है। यह बहुत कठिन होता है तथा तान्तवऊति के अन्तर्वयनकारी ( interlacing ) तन्तुपट्ट कटे हुए क्षेत्र में सुगमता से देखे जा सकते हैं । इसी के कारण इसे तन्तुपट्टार्बुद भी कहा जाता है। यह अर्बुद बहुप्रसवा स्त्रियों में ८० प्रतिशत तक देखे वा पाये जाते हैं। अन्य २० प्रतिशत उनमें मिलते हैं जिनकी उदरप्राचीर पर कोई आघात का इतिहास मिलता हो। जो पेशीसूत्र अन्दर अर्बुद के साथ बन्द हो जाते हैं वे महाकोशाओं की तरह बहुन्यष्टीय संकोशोतीय पुंजों (plasmodial masses ) में परिवर्तित हो जाते हैं। इस अर्बुद की कभीकभी मारात्मकता की ओर भी प्रवृत्ति पाई जा सकती है।
बीजकोषस्थ तन्त्वर्बुद बीजकोषों (ovaries ) में तन्वर्बुद दो रूपों में पाया जाता है। एक जो बहुत कम होता है उसे प्रावरित तन्त्वर्बुद कहते हैं यह एक ही ओर होता है। दूसरा जो अधिक होता है प्रसररूपीय होता है। यह बहुत उभयपाीय या दोनों ओर मिलता है। यह पर्याप्त विशालकाय हो सकता है । यह दूसरा सशाख होता है और शाखा पर मुड़ (twist) सकता है । यह अर्बुद बहुत अधिक कठिन होता है। इसका कटा हुआ क्षेत्र बड़ा श्वेत होता है। इसमें काचर विहास के क्षेत्र और तरलन के कारण कोष्ठनिर्माण पाया जा सकता है। ऊतिमृत्यु, चूर्णीयन तथा अस्थीयन तक मिल सकता है। अण्वीक्षण करने पर ये तन्त्वबुंद होते हैं पर कभी-कभी जिनमें कोशा पूर्णतः प्रगल्भ या प्रौढ़ नहीं हुए रहते हैं वे तन्तुरुहीय ( fibroblastic ) होते हैं और
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