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अर्बुद प्रकरण
८३१
तर्कुरूप संकटार्बुद का आभास कराते हैं । प्रावरित वृद्धि सदैव साधारण रहती है और प्रसररूपीय सदैव संकटार्बुद में परिणत हो जाती है ऐसा विद्वानों का अनुभव है । गर्भाशयस्थ तन्तुपेश्यर्बुद
( Fibromyoma of the Uterine Wall )
गर्भाशय प्राचीर में तन्तुपेश्यर्बुदों की उपस्थिति स्त्री के नवयौवनारम्भ से पूर्व नहीं हुआ करती । साथ ही २० वर्ष की आयु के पूर्व भी नहीं होती ऐसा कुछ विद्वानों का मत है । तीस से लेकर पचास वर्ष तक की आयु वाली प्रौढ़ाओं में ये बहुधा पाये जाते हैं । ग्रीन का कथन है कि एक चौथाई स्त्रीसमाज इस व्याधि से
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पीडित रहा करता है ।
९२ प्रतिशत तन्तुपेश्यर्बुदों का उत्पत्तिस्थल गर्भाशयपिण्ड की पेशीय प्राचीर होता है तथा ८ प्रतिशत गर्भाशयग्रीवा के कानाल में यह उदय होते हैं । ये क्षुद्र, श्वेत, कठिन, ज्वार के बीज जैसे पिण्डों में किसी एक धमनी से सम्बन्धित प्रकट होते हैं और विस्तार ( expansion ) द्वारा बढ़ते हैं । ये स्वयं प्रावरित हो जाते हैं और इनकी रक्तपूर्ति बहुत कम होती है । इस कारण अगर इनका आकार अधिक बढ़ जाता है तो रक्त की कमी के कारण इनका विहास हो जाता है। अधिक बड़े आकार के अर्बुद कठिन या हण तथा प्रत्यास्थ ( elastic ) हो जाते हैं । और जब उन्हें काटा जाता है तो पेशीय और तान्तव ऊति के पट्टों का अन्तर्वलयित तथा चमकता हुआ रूप देखते ही बनता है । पेशी ऊति की मात्रा अर्बुद की आयु पर निर्भर होती है । यदि अर्बुद नया है तो उसमें पेशीय ऊति पर्याप्त होती है और यदि वह पुराना है तो उसमें तान्तवति की मात्रा अधिक बढ़ती चली जाती है । इसी कारण नवीन अर्बुद मृदुल तथा अण्वीक्षण से कोशीय होते हैं और प्राचीन कठिन
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होते हैं ।
गर्भाशय के तन्तुपेश्यर्बुदों को तन्तुरूप ( fibroids) कहा जाता है । यह तन्तुरूप गर्भाशय की पेशी में गहराई में जब बनता है तो यह अन्तःप्राचीरीय तन्तुरूप ( intramural fibroid ) कहलाता है । पर ज्यों ज्यों यह वृद्धि बढ़ती जाती है उसकी स्थिति में भी परिवर्तन होने लगता है क्योंकि गर्भाशय में संकोचनशीलता होती है । उसके कारण या तो यह अन्दर की ओर बढ़ता है और गर्भाशय के अन्तश्छद के नीचे तक आ जाता है तब उसे उपश्लेष्मल तन्तुरूप ( submucous fibroid ) कहते हैं और या कभी कभी यह गर्भाशय के बाहरी धरातल पर उदरच्छद के नीचे भी देखा जा सकता है तब उसे उपलस्य तन्तुरूप ( Subserous fibroid ) कहा जाता है ।
अन्तःप्राचीरीय या अन्तरालित तन्तुरूप सबसे नये अर्बुद होते हैं । ये कई गर्भाशय प्राचीर में व्याकर्षण
परमचय के भी कारण बनते
कई एक साथ बनते हैं। अपनी स्थिति के कारण वे ( distortion ) उत्पन्न कर देते हैं। कभी कभी वे हैं । वे गर्भाशय के कार्य में कोई बाधा विशेष उत्पन्न नहीं किया करते । नये ही होने के कारण इनमें विहास भी नहीं हुआ करता ।
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