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अर्बुद प्रकरण
इसी कारण ब्वायड का कथन है कि कितना ही शस्त्रसाध्य संकटार्बुद हो, फेफड़ों का एक्सरे अवश्य ले लेना चाहिए । ५- १० प्रतिशत रोगियों में लसधारा द्वारा भी इसका प्रसार होता हुआ मिल सकता है ।
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संकार्बुद योजी ऊति में उत्पन्न होने वाला अर्बुद होने के कारण जहाँ-जहाँ शरीर में योजी ऊति मिलती है वहीं वहीं इसकी उत्पत्ति को सदैव सम्भावना रहती है । अस्थि, उपत्वग् ऊति, मांसधराकला और पेशी ये इसकी उत्पत्ति के मुख्य स्थल ( sites ) हैं ।
संकार्बुद का वर्गीकरण तथा प्रकार
संकट के वर्गीकरण के लिए दो विधियां चलती हैं- - एक कौशिकीय ( cytological ) और दूसरी औतिकीय ( histological ) । कौशिकीय विधि में ऊति का नाम उस कोशा के अनुसार लिया जाता है जो उसे भरे रहता है । इसी कारण गोलकोशीय संकट, मिश्रकोशीय संकट, तर्कुकोशीय संकट, महाकोशीय संकट आदि नामों से इसको पुकारा जाता है । यह विधि तो जब कोई चारा न चले तब प्रयोजनीय है अतः इसे जहाँ तक हो कम प्रयुक्त करना चाहिए । औतिकीय विधि में अर्बुद का नामकरण उस ऊति के अनुसार होता है जिसमें वह उत्पन्न होता है । तन्तुसंकट, अस्थिसंकट, कास्थिसंकटादि इसी दृष्टि से रखे गये और व्यवहृत नाम हैं । औतिकीय ही केवल एक सन्तोषजनक रूप है । क्योंकि अन्तरालित ऊति अधिक महत्वपूर्ण होती है न कि कोशा का प्रकार । नीचे हम संकटार्बुद के औतिकीय प्रकारों का विवेचन करते हैं जिनके साथ साथ उनके कौशिकीय रूप भी यथासम्भव दिये जा रहे हैं ।
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संकट के औतिकीय प्रकार
तन्तुसंक टार्बुद (fibrosarcoma ) — इसका मुख्य कोशा
तन्तुरुह
( fibroblast ) होता है । यह एक प्रकार का तर्कुकोशीय ( spindle-celled ) संकार्बुद होता है । यह अर्बुद उतनी अधिकता से नहीं होता जितना कि अनुमान लगाया जाता रहा है । पहले बहुत से मारात्मक योज्यूतीय अर्बुदों को तन्तुसंकट मान लिया जाता था पर खोज से आज वे परिणाही वातनाडियों ( peripheral nerves ) के द्वारा उत्पन्न चेताजनक ( neurogenic या वातनाडीजन्य ) सिद्ध हुए हैं 1 स्थूल और सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर यह संकट विविध लक्षणों से युक्त देखा जाता है | अनघटित (anaplastic) जितना ही अधिक यह होता है उतना ही इसके रूप में परिवर्तन देखने को मिलता है । कभी कभी यह अनघटन इतना अधिक होता है कि अर्बुद बहुत अधिक मृदुल बनता है । उसके कोशाओं में तर्कुरूपता इतनी कम होती है कि उसे गोलकोशीय कहने का भ्रम उत्पन्न हो जाता है । उसके संधार में भी बहुत भिन्नता हो जाया करती है । वह कभी तो बहुत अधिक और कभी बहुत कम होता है । उसमें कभी तो इतने अधिक तन्तुक ( fibrils ) होते हैं कि उसे