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अर्बुद प्रकरण
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३. अन्ननलिकास्थ सङ्कट - अन्ननलिका में सङ्कटार्बुद बहुत कम होता है उसकी अपेक्षा कर्कट बहुत अधिक पाया जाता है । अत्यधिक मारात्मक प्रथम श्रेणी के अनघटित प्रकार के दुष्ट अर्बुद को अन्नप्रणाली का संकट ( carcino sarcoma of the oesophagus ) कहा जाता है पर वास्तव में कर्कटार्बुद ही होता है । ४. आमाशयस्थ सङ्कट - यह भी बहुत कम पाया जाने वाला अर्बुद है । जब यह होता है तो एक बहुपादीय पुंज बना लेता है जो आमाशयगुहा में विक्षिप्त (projeoted ) रहता है । यह बहुधा पेशीसूत्रों से उत्पन्न होने के कारण पेशीय संकट होता है जो लम्बे लम्बे पेशी कोशाओं से बनता है । आमाशयिक श्लेष्मलकलास्थ लसग्रन्थियों पर कभी कभी लससंकट या हाजकिनामय का प्रभाव देखा जाया करता है । आमाशय का संकट उसके कर्कट से मिलता जुलता होता है पर यह कर्कट की अपेक्षा कुछ कम आयु वालों में होता है । इसमें कर्कट की अपेक्षा रक्तवमन ( haematemesis ) भी अधिक होती है ।
५. आन्त्रसङ्कट - तुद्रान्त्र में सङ्कटार्बुद और कर्कटार्बुद दोनों उत्पन्न हो सकते हैं । दोनों ही बहुत कम देखे जाते हैं परन्तु कर्कट की अपेक्षा सङ्कट अधिक मिलता है । प्रथम जात संकट अन्त्र की उपश्लेष्मल कला में स्थित लसाभ कूपिका ( lymphoid follicles ) में उत्पन्न होते हैं जिसके कारण यह लससङ्कट होता है । सङ्कट का दूसरा उद्भव स्थल मांसप्राचीर हो सकती है या परिवाहिनीय योजी ऊति भी हो सकती है उस समय यह तर्कुकोशीय संकट बनता है । दोनों ही रूप बालकों या तरुणों में पाये.. जाते हैं ये अन्न्र के सुषिरक में बढ़ते हैं । और जीर्ण आन्त्रावरोध के कारण बनते हैं । ये अन्त्र प्राचीर की भरमार करते हैं जिससे उसमें काठिन्य तथा क्रमसंकोचाभाव ( loss of peristalsis ) हो जा सकता है। कभी वृद्धि उदरच्छद को फाड़ कर घुस जाती है जिससे उदरच्छदपाक हो जाता है या किसी अन्य आन्त्रपाश (loop ) में नाल ( fistula ) बन सकती है ।
(५) अन्य औदरिक सङ्कटार्बुद
१. पश्वोदरच्छदीय सङ्कट - उदर के पश्च भाग में स्थित उदरच्छद ( retroperitoneum ) में भी संकटार्बुद हो सकता है । यह उसकी कला ( fascia ) से उत्पन्न होता है । यह तन्तुसंकट ( fibro- sarcoma ) होता है और इसमें तन्तुसंकट में होने वाले सभी लक्षण मिलते हैं ।
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२. यकृत् संकट - यकृत् में प्रथमजात संकट इतने कम होते हैं कि यदि उन्हें नहीं होते ऐसा मान लिया जाय तो भी कुछ अनुचित नहीं है । यहाँ उत्तरजात संकट बहुधा पाये जाया करते हैं । ये गोल या तर्कुकोशीय हुआ करते हैं ।
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(६) मूत्र - प्रजनन संस्थानोय सङ्कटार्बुद
१. विल्मीयार्बुद ( Wilms' tumour ) – यह एक शिशुरोग है जो जन्म के समय भी हो सकता है और ३ वर्ष की अवस्था तक उत्पन्न हो सकता है । यह बहुधा
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