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अर्बुद करण
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इस रोग में जालिकातन्तु बढ़ते भी हैं और साथ ही अर्बुद कोशा को चारों ओर से र भी हैं ।
यद्यपि साधारणतः हाजकिनामय, लससंकट और जालिकाकोशीय संकट तीनों: एक दूसरे से पूर्णतः पृथक् देखे जाते हैं पर विशिष्ट स्थलों पर इन तीनों में से कोई दो एक दूसरे से मिल भी सकते हैं। इस कारण जब कि जीवितावस्था में कोशापरीक्षण: से एक ही रूप मिले, मृतावस्था में परीक्षण में दो रूप मिले हुए भी देखे जा सकते हैं।. हर्बट और उसके सहयोगियों का ऐसा विश्वास है कि इनमें दो रासायनिक पदार्थ रहतेहैं जिनमें से एक मज्जाभ कोशाओं का प्रगुणन करता है और दूसरा लसाभ कोशाओं का प्रगुणन करता है । हाज किनामय में ये दोनों पदार्थ मूत्र में एक बराबर रहते हैं । इस प्रकार एक ही जालिकाकोशा से तीन प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं ।
raft जालिकासंकट जहाँ भी जालिकाकोशा हो वहीं उत्पन्न हो सकता है परन्तु : व्यवहार में लसग्रन्थकों में सबसे अधिक, फिर तुण्डिकाग्रन्थियों नासाग्रसनी तथा. महास्रोत की लाभ ऊति में, तत्पश्चात् अस्थिमज्जा में तथा सबसे कम यकृत् तथा प्लीहा में यह मिलता है । वैसे अन्यत्र कहीं प्राथमिक विक्षत बनने पर विस्थाय के रूप में इन दोनों स्थलों पर भी मिल सकता है। अन्य मारात्मकार्बुदों की भाँति ये अर्बुद भी स्थानिक, आक्रामक और विनाशक होते हैं तथा पर्याप्त और दूर तक विस्थायोत्पत्ति करते हैं । इनका प्रसार पहले लसग्रन्थक ( lymph node ) से होता है फिर रक्तधारा द्वारा । कहीं-कहीं जैसे अस्थि की बहुमज्जकार्बुदोत्कर्ष ( multiple myelomatosis of the bone ) में विभिन्न स्थलों पर बहुत सी वृद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं उन्हें उत्तरजात या प्रथमजात ऐसा निर्णय करना बड़ा कठिन हो जाता है । इन सभी की मारात्मकता बहुत अधिक होती है । मृत्यु कुछ महीनों में भी हो सकती: है । इनमें तेज किरणों का भी कुछ प्रभाव पड़ता है जिस कारण | वृद्धि कुछ दिन अवरुद्ध रह सकती है । कर्कट के विपरीत यहाँ विभिन्नन की मात्रा पर मारात्मकता की वृद्धि नहीं होती । अतः यह कहना कि एक लससंकट से अविभिनित संकोशीय स्तर अत्यधिक मारात्मक है सन्देहास्पद है । नैदानिक दृष्टि से इन अर्बुदों के कारण ज्वर, द्वितीयक रक्तक्षय तथा कभी कभी बहुन्यष्टीय सितकोशोत्कर्ष मिल सकता है । लस्य स्यून ( serous s809 ) पर प्रभाव पड़ने से उनमें पाये जाने वाले उदासर्गी: तरल में रक्तवर्णता पायी जाती है ।
बहुरूपीय जालिकासङ्कट
(Polymorphic Reticulo Sarcoma)
यतः यह हाज किनामय ( लसग्रन्थ्यर्बुद ) से बहुत कुछ मिलता जुलता होताहै । अतः इसका वर्णन करना आवश्यक है । इसमें कई बहुन्यष्ट्रीय कोशा होते हैं जो आकार और सूत्रिभाजना की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत अन्तर रखते हैं । यहाँ जालिकान्तश्छदीय कोशाओं में अविशिष्ट परमचयता पाई जाया करती है । यहाँ जालिका ( reticulin ) का निर्माण बढ़ जाता है साथ में श्लेषजनीय तन्तुक
६६, ७० वि०
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