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विकृतिविज्ञान
इस अर्बुद का पोषण तो उस रक्त से हो जाता है जिसकी वाहिनियों को यह बरबस पछाड़ता है । न इसमें संधार ही होता है ।
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इस अर्बुद के प्रसार का एक मात्र साधन रक्तधारा है क्योंकि पोषरूह कोशाओं का रक्तवाहिनियों पर आक्रमण एक स्वाभाविक घटना है । कभी-कभी इसी रक्त के द्वारा फुफ्फुस में इसके विस्थाय गर्भपात होने के कुछ ही काल बाद देखे जाते हैं । फुफ्फुसादि में बने ये उत्तरजात अर्बुद भी मूल अर्बुद की भाँति ही रक्तास्रावी और उनमें अण्वीक्षीय चित्रण भी मूल अर्बुद जैसा ही मिलता है । लैङ्गहैन्सीय कोशाओं की जितनी अधिक बहुलता होगी उतनी ही दुष्टता अर्बुद में बढ़ती है । कभी-कभी कोशा गर्भाशय प्राचीर को इतना भेदते चले जाते हैं कि वह छिद्रित तक हो जा सकता है । पेशीय भाग में ऊतिनाश हो जाया करता है । अर्बुद के दुष्ट कोशाओं में आकार की विषमता तथा अतिमात्र रंगायण (hyperchromasia ) जितना मिलता है उतना विभजनाङ्कन ( mitoses ) नहीं मिलते। इसका विस्थायन फुफ्फुस तथा योनिप्राचीर एवं बीजग्रन्थियों तक में मिलता है ।
यह रोग अत्यधिक मारक होते हुए भी यदि गर्भाशय की वृद्धि को तुरत शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदित कर दिया जावे तो प्राग्ज्ञान ( prognosis ) कुछ साध्य हो जा सकता है और विस्थाय भी तिरोहित हो जाते हैं ।
( ३ ) दन्ताकाचार्बुद
यह एक ठोस कोष्ठीय अधिच्छदार्बुद है जो या तो दाँत के आकाच ( enamel) भाग से बनता है या परादन्त ( paradental) भाग से जन्म लेता है। इसमें कई गुण कृन्तक विद्रधि (रोडेण्ट अल्सर) सदृश होते हैं परन्तु यह दुष्ट न होकर साधारण होता है और इसके कारण विस्थाय नहीं बना करते। यह स्थानिक विनाशक और धीरे-धीरे भरमार करने वाला है । इसमें पैठिक कोशीय कर्कट ( basal-cell carcinoma ) के लक्षण मिलते हैं जो कि कृन्तक विद्वधि में पाये जाते हैं । इसका इतिहास बड़ा लम्बा होता है जो बीस वर्ष तक जा सकता है जिसमें यह धीरे-धीरे ऊपर या नीचे के हनु की ऊति में भरमार करता है । इसमें शोथोत्पत्ति होती है तथा अस्थि का नाश होने लगता है । जब यह अर्बुद अधिक अन्दर को होता है तो उसका उच्छेद करना कठिन होता है और अर्बुद की पुनरुत्पत्ति हो जा सकती है। उसकी मारात्मकता में वृद्धि हो जाती है । यहाँ तक कि अन्त में विस्थायन होने लगते हैं । इसके कोशा आकाचरुह ( enameloblast ) होते हैं जो वेलनाकार होते हैं। ये कोशा या तो किसी कोष्ठक का स्तर बनाते हैं या वे ठोस पंक्तियाँ बनाते हैं जो तान्तव संधार द्वारा पृथक् रहती हैं। ये कोशा कहीं अधिक घनाकार दिखलाई देते हैं और कहीं अधिक शल्कीय | आकाचरूहों द्वारा इसका निर्माण होने से इसका एक नाम आकाचरुहार्बुद ( enameloblastoma ) भी कहा जाता है। पोषणिकाग्रन्थि तथा जंघास्थि ( tibia ) इन दो स्थलों में भी ऐसे ही अर्बुद मिल सकते हैं । ऐसा ब्वायड का कथन है ।
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