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. विकृतिविज्ञान... तभी सम्भव है जब किसी ऊति में उपसर्ग का अधिक बल हो कभी कभी सिरा के चारों ओर शोथ होने पर भी यह होती है उस अवस्था को परिसिरापाक ( periphlebitis ) कहते हैं। सिरापाक में सिराप्राचीर अधिरक्तित और स्थूल होजाती है उसकी अन्तश्छद लाल और रूक्ष बन जाती है। उसमें लाल घनास्त्र मिल सकता है। यदि उपसर्ग हुआ तो यह घनास्र टूट कर स्थानिक विद्रधि का रूप धारण कर लेता है। साधारण सिरापाक में अन्तःशल्य अधिक देखे जाते हैं। ____ व्याधि का निदान करने की दृष्टि से साधारण सिरापाक विस्तृत पादसिराओं ( varicose veins ) में देखा जाता है तथा अन्तःदीर्घोत्ताना सिरा ( internal saphenous vein) में देखा जाता है। इसका प्रारम्भ सहसा होता है। पहले स्थानिक तीव्र शूल रहता है तथा कुछ ज्वर हो जाता है जिसके साथ थोड़ा कम्प तथा बेचैनी ( malaise ) रहती है। यदि सिरा बाह्या हुई तो उसमें दबाने पर शूल मिलेगा और सिरा का सम्पूर्ण मार्ग सूज आवेगा। दबाकर देखने से सम्पूर्ण सिरा रस्सी सी कड़ी दिखेगी और जहां जहां सिरा में कपाट होते हैं वहां वहां अधिक फूली हुई मिलेगी। थोड़े समय पश्चात् सम्पूर्ण त्वचा जो सिरा के ऊपर होती है लाल और सूजी सी हो जाती है। अंग विशेष की क्रिया शक्ति मन्द पड़ जाती है तथा सिरा द्वारा सिंचित प्रदेश में भी सूजन मिलती है । ज्वर और शूल थोड़े दिन बाद कम हो जाते हैं पर शोथ, रक्तवर्णता, स्पर्शाक्षमता और उत्फुल्लता बराबर बनी रहती है । यदि पूयोत्पत्ति होगई तो एक स्थानसीमित अनुतीव्र विद्रधि बन जाती है। यदि सिरा गम्भीरा हुई तो सिरापाक के लक्षण गहराई के कारण अधिक न पाये जाकर सम्पूर्ण अङ्ग में बहुत अधिक स्फाय या शोफ (oedema) हो जाता है। सम्पूर्ण अंग दृढ़
और फूला हुआ एवं श्वेताभ हो जाता है जिसे दबाने से गड्ढा पड़ जाता है (pitting on pressure )। यहां भी शूल थोड़े समय रह कर शान्त हो जाता है पर स्फाय सप्ताहों चलता है। प्रसवोपरान्त और्वी सिरा में पाक होने के कारण स्त्रियों को प्रायः श्वेतपाद ( white leg ) या फ्लेग्मेशिया एल्बा डोलेन्स नामक रोग हो जाता है।
औपसर्गिक सिरापाक सहसा प्रारम्भ होता है ज्वर तथा कम्पन ( rigors) पाया जाता है। यदि सिरा बाह्या हुई तो व्रणशोथ के विभिन्न लक्षण मिलते हैं पर गम्भीरा सिराओं में वे लक्षण प्रत्यक्ष नहीं होते वहाँ तो प्रकम्पपूर्वक कई बार ज्वर चढ़ना तथा पूयरक्तता के लक्षण मिलते हैं। प्रायः गम्भीरा सिराएँ ही इस पाक से प्रभावित होती हैं।
___ लसीकापाक ( Lymphangitis) यह तीव्र और जीर्ण दो प्रकार का होता है। तीव्रलसवहापाक परिणाह की लसवहाओं में तीव्र व्रणशोथ होने के कारण होता है जो उपसर्ग के कारण (विशेष करके पूयजनक मालागोलाणु द्वारा) देखा जाता है। कभी कभी थोड़ी खुर्सट ( scratch) त्वचा पर लग जाने से या कोई दूषित फुसी उठ आने से भी इसका
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