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अर्बुद प्रकरण
६८१ ज्यो अवस्था बढ़ती जाती है यह नियन्त्रण ढीला पड़ता जाता है और अधिच्छदीय उति अधिक प्रगुणित होकर कर्कटोत्पत्ति कर देती है।
इस मत के मानने में कई आपत्तियाँ हैं जो इस प्रकार हैं:
(१) एक उति पर दूसरी ऊति का नियन्त्रण हो इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।
(२) यदि नियन्त्रण मान भी लिया जावे और वह एक अति द्वारा कम होता जावे तो दूसरी ऊति में एक दम अनेक अर्बुद एक ही स्थान पर उत्पन्न होने चाहिए पर देखा यह गया है कि एक स्थान पर एक ही अर्बुद उत्पन्न होता है।
(३) नियन्त्रण घटने पर अधिच्छदीय ऊति में प्रत्येक स्थान पर एक ही काल में कर्कटोत्पत्ति नहीं देखी जाती।
(४) एक ही अवस्था के दो व्यक्तियों में कर्कटोत्पत्ति का स्थान एक नहीं रहता। (५) यह वाद संकटाबंदोत्पत्ति पर कोई प्रकाश नहीं डालता।
कोनहीम-कोनहीम का कथन है कि गर्भावस्था में भ्रूण के शरीर में कुछ भौणकोशा ( embryonic cells ) शरीर की विभिन्न कोशाओं में श्रौणावस्था में हो रह जाते हैं पूर्ण परिपक्क नहीं हो पाते। भ्रौण कोशाओं की वृत्ति सदैव प्रगुणात्मक होती है। आगे भविष्य में ऐसे कोशा सक्रिय हो उठते हैं और जिस प्रकार के वे होते हैं उसी प्रकार के अर्बुदों को जन्म देते हैं।
इस वाद के विरोध में सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि बहुत छानबीन करने पर भी अण्वीक्ष यन्त्र इन भ्रौणकोशाओं का पता लगाने में असमर्थ रहा है। अभी तक किसी भी औतिकीवेत्ता ने इन भ्रौणकोशाओं का वर्णन नहीं किया ।
रिब्बर्ट-रिब्बर्ट ने अपना जो मत व्यक्त किया है वह वाल्डेयर-थीर्श तथा कोनहीम दोनों के मतों का संमिश्रण मात्र है। वह कहता है कि ऊतियों में परस्पर समतोलस्थिति भी रहती है तथा उनमें भ्रौणकोशा भी पाये जाते हैं। जब यह समतोलस्थिति बिगड़ती है भ्रौणकोशा उत्तेजित हो जाते हैं और अबुंदोत्पत्ति कर देते हैं । फक्करोग ( rickets) द्वारा उत्पन्न कास्थीय अर्बुदों की उत्पत्ति के हेतु के सम्बन्ध में तो कुछ सहायता मिलती है पर अन्य अर्बुदों के लिए इस मत का कोई उपयोग नहीं है ऐसा कहा जाता है।
अन्तरावेश वाद-एक प्रकार की ऊति में दूसरे प्रकार की ऊति के कोशाओं का अन्तरावेश ( inclusicn ) होने से कुछ अर्बुद बन जाते हैं। श्रौणार्बुद ( teratomas ) इसका उदाहरण है। यह सत्य है कि भ्रौणार्बुद के लिए यह वाद सत्य हो परन्तु अर्बुद की सर्वसामान्य उत्पत्ति का हेतु इसे कैसे घोषित किया जा सकता है ? श्रौणार्बुद के सम्बन्ध में भी नवीन खोजों के अनुसार और भी अधिक दृढ और सन्तोषजनक स्पष्टीकरण हो चुका है जिसे हम आगे प्रकट करेंगे।
हौजमैन हौजमैन के द्वारा व्यक्त मत, अर्बुदोत्पत्ति की वास्तविक कल्पना न होकर विविध अर्बुदों की कोशीय आकृतियों की प्रकृत रचनाओं से पृथकता प्रकट
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