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अर्बुद प्रकरण
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( macrophages ) करते हैं ये बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर उन कर्कट कोशाओं पर आघात करते हैं जो प्रविकिरण द्वारा आघातग्रस्त होते हुए भी अभी सजीवावस्था में होते हैं। धीरे-धीरे सम्पूर्णक्षेत्र में तन्तूत्कर्ष हो जाता है। आगे जब यह संकुचित होता है तो रक्तपूर्ति को और भी कम कर देता है । तन्तूत्कर्ष के अन्दर कहीं-कहीं अर्बुद कोशासमूह इतस्ततः पड़े हुए मिलते हैं ।
अर्बुदहृषता ( sensitivity of tumours )
चिकित्सा दृष्टि से अर्बुद हृषता अनेकों तथ्यों पर अवलम्बित होने के कारण उसका समझना बहुत कठिन होता है उसे सुगम करने के लिए उसे ४ भागों में विभाजित किया जाता है::
१ - अर्बुद वृद्धि की गति ।
२-अर्बुद ऊति के विविभिन्नन की मात्रा |
३- मातृ ऊति के कोशा का प्रकार ।
४ - रश्मियों और अर्बुद कोशाओं के बीच के पदार्थ ।
अर्बुदवृद्धि की गति से उन न्यष्टियों की संख्या को लिया जाता है जो विभजन ओर बढ़ रही हैं और जिन पर रश्मियों का घातक प्रभाव होने वाला है । साधारण तया हम यों कह सकते हैं कि जिन अर्बुदों में कोशा कम अंश में विभिन्नन प्रकट: करते हैं उनमें बढ़ने की शक्ति अधिक होती है और उनके अधिक संख्य कोशा किसी भी समय विभाजित होते हैं। अधिक विस्तार में जाने से किसी भी अर्बुद की तेजो पता उसके विविभिन्नन के अंश ( degree ) के समानान्तर चलती है । मातृ ऊति का कोशा कौन प्रकार का है इसका बहुत बड़ा महत्त्व होता है । क्योंकि तेजोहृषता की दृष्टि से ऋजु ऊतियों में आपस में बहुत अन्तर होता है तथा जिस ऊति से जो अर्बुद बनता है उस अर्बुद के द्वारा अपनी मातृ ऊति के अनुसार ही तेजोहषता प्राप्त की जाती है । ऋजु ऊतियों में प्रजननांगों को प्रजननशील अधिच्छद तथा जालकान्त -
दीय संस्थान के कोशाओं पर प्रविकिरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है अर्थात् ये दोनों सर्वाधिक तेजोहृष होते हैं । प्रजननांगीय अर्बुदों के कोशीय प्रकार जटिल होते हैं खास कर णार्बुद (teratomatas ) में । यद्यपि वृषणों के शुक्रार्बुद भी बहुत अधिक तेजोहृष होते हैं । जालकीय संकटार्बुद तथा जालकोत्कर्ष ( reticuloses ) दोनों भी अधिक तेजोहृष होते हैं। त्वचा में तेजोहृषता मध्यम दर्जे की होती है । अस्थियों में यह बहुत कम देखी जाती है तथा वातनाडियों में तेजोहृषता नाम मात्र को ही होती है। अधिचर्माभ कर्कट ( epidermoid cancer) अच्छा तेजोहृष होता है वहाँ वि - विभिन्नन का बहुत महत्त्व है । अस्थिजनक संकटार्बुद कम तेजोहृष होता है | श्लेषसंकटार्बुद (gliosarcoma ) तथा काल्यर्बुद ( melanoma ) दोनों अत्यधिक दुष्ट अर्बुद होते हुए भी इन पर प्रविकिरण का बहुत कम प्रभाव होता है 1 वे पदार्थ जो तेज किरणों को अर्बुद कोशाओं तक पहुँचने में कई प्रकार के होते हैं । यदि अर्बुद बहुत गहराई में है तो ऋजु
बाधक हो सकते हैं। ऊतियाँ भी बाधा
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