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अर्बुद प्रकरण
७४१ बहुत बड़ी कभी नहीं होती। उनके बहुत से छोटे-छोटे ग्रन्थक वपावहन और आन्त्रनिबन्धिनी में टापू के रूप में इतस्ततः देखने में आते हैं। वे भित्तिलग्न ( parietal ) उदरच्छद में भी देखे जा सकते हैं। कर्कट के कारण वपाजाल बहुधा स्थूल हो जाता है। इस स्थूलता के कई कारण हैं उनमें एक लसवाहनीक शोफ है दूसरा प्रसरतन्तूत्कर्ष होता है। उदरच्छद या वपाजाल मोटी चद्दर के रूप में आन्त्र पर पड़ा रहता है।
जब उदरच्छद कर्कटान्वित हो जाती है तो वहाँ जलोदर अवश्य होता है। जलोदर के जल में रक्त तथा कर्कट कोशा दोनों पाये जाते हैं।
(३) याकृत कर्कट
(Cancer of the liver ) यकृत् एक ऐसा अङ्ग है जहाँ प्राथमिक कर्कट बहुत ही कम पाये जाते हैं पर उत्तरजात कर्कट उतने ही अधिक देखने में आते हैं। इस कारण जब भी यकृत् में कभी कोई कर्कट मिले उसे उत्तरजात या द्वितीयक ही मानना चाहिए जब तक कि सब सम्भव उपायों से कर्कट का प्राथमिक उद्भव स्थल हटा दिया जावे। इन सब स्थलों में अधिवृक्क ग्रन्थियाँ, वक्ष, महास्रोत, फुफ्फुस, गर्भाशय, चनु आदि में कर्कट के प्रारम्भिक स्थल की खोज भली प्रकार कर लेनी चाहिए। जब यहाँ कर्कट न मिले तब ही यकृत् के कर्कट को प्राथमिक कर्कट माना जाना चाहिए। कभी-कभी अन्यत्र कर्कट बहुत सूक्ष्म होता है जिसके कारण यकृत् में स्थित कर्कट उत्तरजात होने पर भी प्रथमजात ज्ञात होता है । अतिवृक्कार्बुद (hyper nephroma) में वृक्क में कर्कट बहुत सूक्ष्म होता है जब कि उसका उत्तरजात स्वरूप यकृत् में पर्याप्त विशद होता है।
अब हम पहले यकृत् के प्रथमजात कर्कटों का विचार करके फिर उत्तरजात कर्कटों का वर्णन करेंगे।
प्रथमजात कर्कट-यकृत् के प्रथमजात कर्कट के दो रूप हमारे सम्मुख आया करते हैं :
(१) यकृदर्बुद ( hepatoma ) तथा । (२) पित्तप्रणालीकार्बुद ( bile duct carcinoma)।
यकृदर्बुद-इसे यकृतकोशीय कर्कट ( liver cell carcinoma ) कहते हैं। यह दो प्रकार का मिलता है। एक वह जिसमें कर्कट का एक ही पुञ्ज होता है जिसके चारों ओर थोड़े से ग्रन्थक पड़े होते हैं। दूसरे प्रकार में कर्कट के अनेक ग्रन्थक यकृत्-पिण्ड में इतस्ततः फैले रहते हैं।
कर्कट के पुञ्ज चाहे अनेक हों या एक, वे सभी मृदुल और भारी होते हैं तथा उनमें ऊतिनाश होता हुआ तथा रक्तस्त्राव होता हुआ बहुधा देखा जाता है। दोनों ही प्रकार के कर्कटों का सम्बन्ध केशिकाभाजीय प्रकार के यकृद्दाल्युदर के साथ होता है। परन्तु बहुग्रन्थकीय प्रकार में तान्तवऊति पर्याप्त सघन होती है और उसके कारण बहुत
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