________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
७८८
विकृतिविज्ञान
२ – स्तनस्थ ग्रन्थ्यर्बुद ( Adenoma of the Breast )
स्तन में सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद तथा कर्कट ये दो प्रकार की वृद्धियाँ ही विशेषरूप में पाई जाती हैं | सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद सदैव नवयुवतियों में तथा कर्कट रजोनिवृत्तिकालीन अवस्था वाली प्रौढाओं में पाया जाता है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद स्तन की स्तन्यवहा प्रणालियों के अधिच्छद तथा उसके चारों ओर ढिलाई से लगी संयोजीऊति से सम्बद्ध व्याधि है । स्त्रीसदि (oestrin ) के द्वारा उत्तेजना पाकर ये दोनों ऊतियाँ ( प्रणालिकीय अधिच्छद तथा संयोजी ऊति ) ही अधिक प्रगुणित होती हैं । इससे विदित है कि सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद की उत्पत्ति की निर्मिति में स्त्रीमदि का एक महत्वपूर्ण स्थान है । कोमल ग्रन्थ्यर्बुद से लेकर कठिन तन्त्वर्बुद तक के सभी प्रकार इस सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुद में देखने को मिल जाते हैं। ये वृद्धियाँ ठोस, परिलिखित ( circumscribed ), अङ्कुरीय अथवा कोष्ठीय किसी भी प्रकार की हो सकती हैं ।
}
ये वृद्धियाँ तरुण जीवन के प्रभात काल में उत्पन्न होती हैं । इनके ऊपर एक प्रावर अवश्य चढ़ा होता है जो सुस्पष्ट होते हुए भी बहुधा अपूर्ण मिलता है । ग्रीन ने तीन प्रकार के सतन्तु ग्रन्थ्यर्बुदों का वर्णन किया है:
:
( १ ) परिप्रणालिकीय ग्रन्थ्यर्बुद ( Pericanalicular filro-adenoma ) ( २ ) अन्तः प्रणालिकीय ग्रन्थ्यर्बुद ( Intarcanalicular fibro-adenoma) (३) सांकुरकोष्ठीय ग्रन्थ्यर्बुद ( Papillary cystic fibro-adenoma ) । हम इन तीनों का संक्षिप्त वर्णन उपस्थित करना अपना कर्त्तव्य मानते हैं
परिप्रणालिकीय ग्रन्थ्यर्बुद - यह मन्थरगति से बढ़ने वाला आकार में बहुत छोटा, अत्यन्त कठिन अर्बुद है । यह स्तन में हाथ से टटोलने पर इधर उधर डुलाया जा सकता है तथा इसके प्रावर से इसे सरलतया मुक्त किया जा सकता है । यह कठिन, चमकदार और श्वेत होता है और चाकू से कठिनता के साथ कटता है । अण्वीक्षण करने पर प्रणालिकाओं के चारों ओर अर्बुदिक तान्तव रज्जुपाश जो पर्याप्त स्थूल होता है, लिपटा हुआ दिखता है । प्रणालिकाएँ विस्फारित नहीं मिलती हैं । उनके आस्तरक कोशाओं की संख्या भो बढ़ी हुई पाई जाती है । साधारण स्तन में जितने गर्ताणु होते हैं उससे कुछ अधिक ही यहाँ होते हैं ।
अन्तःप्रणालिकीय ग्रन्थ्यर्बुद - परिप्रणालिकीय ग्रन्थ्यर्बुद की अपेक्षा प्रारम्भ में यह वृद्धि अधिक मृदु होती है। इस पर भी प्रावर चढ़ा होता है तथा इसे भी स्तन में इधर उधर हाथ से बुलाया जा सकता है । आगे चल कर यह बहुत बड़ा आकार धारण कर सकता है । यह त्वचा से संलग्न होकर उसे पीडित करके अपुष्ट कर सकता है । इस कारण त्वचा में व्रण हो सकता है और उसमें उपसर्ग लग सकता है | त्वचा में से देखने पर अर्बुद कर्कट सा मालूम पड़ने लगता है । अण्वीक्षण करने पर इस अर्बुद में ग्रन्थीय ऊति की अपेक्षा तान्तव ऊति की अधिक वृद्धि देखी जाती है ।
For Private and Personal Use Only