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विकृतिविज्ञान भ्रौण ग्रन्थ्यबंद-यह नाम एक उस अस्वीकृत वाद पर आधारित है जिसके अनुसार विक्षतोत्पत्ति भ्रौण कोशाकोटर ( foetal cell rests ) माने जाते हैं। यह तरुणाई का रोग है और यौवनारम्भ के साथ-साथ एक कठिन ग्रन्थक के रूप में मृदु गलगण्ड के बीच में रहता है। लूगोल विलयन का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अर्बुद अकेला होता है और वही अकेला अवटुका का विक्षत होता है। इसके चारों ओर एक तान्तव प्रावर चढ़ा होता है । यह अवटुका को एक ओर धकेल देता है । ऐसा श्लेषाभ ग्रन्थकों में नहीं देखा जाता । कटा धरातल सघन और प्रत्यास्थ ( elastic) होता है । वह पारान्ध गुलाबी या धूसर वर्ण का होता है। उसमें अति नाश की पीली रेखाएँ खिंची रहती हैं। बीच के भाग में श्वेत तान्तव आन्तरक बहुधा मिलता है। इन्हीं सब कारणों से विक्षत को श्लेषाभ विक्षतों से पृथक अवटुका का ही एक विक्षत मान लिया गया है। इस विक्षत में कोष्ठकोत्पत्ति, रक्तस्राव तथा चूर्णीयन श्लेषाभ ग्रन्थकों से कहीं अधिक मिलती है और आगे चल कर अर्बुद का स्थान एक कोष्ठक ( cyst ) ले लेती है जिसकी प्राचीरें चूर्णीयित ( calcified ) होती हैं। यदि विह्रासात्मक परिवर्तन इसकी बड़ी सीमाओं को नष्ट न कर दें तो अण्वीक्षीय चित्र श्लेषाभ ग्रन्थकों के अण्वीक्षीय चित्र से बहुत पृथक दिखलाई देता है। इस अर्बुद में छोटेछोटे गर्ताणु (acini) होते हैं जिनमें श्लेपाभ पदार्थ बहुत ही कम होता है या बिल्कुल ही नहीं होता । पुराने होने पर उनमें श्लेषाभ पदार्थ बढ़ता है और यह श्लेपाभ ग्रन्थक का रूप ले लेता है। ग्रन्थि की अवकाशिकायें (alveoli ) एक रचनाविहीन काचर संधार के द्वारा बहुत दूर कर दी जाती हैं। इस संधार की आकृति फूली हुई या श्लेषाभ होती है। उसमें अनेक बड़ी तनुप्राचीरी वाहिनियाँ होती हैं जिनसे बड़ी सरलता से रक्तस्राव होता है। कुछ ग णु अधिच्छदीय कलिकाओं का रूप ले लेते हैं जिनसे नवीन गर्ताणुओं का निर्माण होता है। कभी-कभी अर्बुद ठोस पुंजों या कोशादण्डिकाओं ( trabeculae of cells) द्वारा बनता है। इनसे वास्तविक अर्बुद का आभास मिलता है।
-बीजग्रन्थीय ग्रन्थ्य र्बुद ( Adenoma of Ovaries ) बीजग्रन्थियों में साधारण या मारात्मक किसी भी प्रकार के अधिच्छदीय अर्बुद उत्पन्न हों, लगभग उनमें से अस्सी प्रतिशत अर्बुदों में ग्रन्थ्यर्बुदात्मक रूप देखा जाता है। यह रूप अधिकतर कोष्ठीय ही होता है। ठोस ग्रन्थ्यर्बुद तो बहुत ही कम मिला करते हैं। बीजग्रन्थि के कोष्ठीय ग्रन्थ्यर्बुदों के भी दो भेद होते हैं:
(१) लस्यसकोष्ठ ग्रन्थ्यर्बुद ( serous cystadenoma )। (२) बहुगह्वरीय सकोष्ठ ग्रन्थ्य र्बुद ( multilocular systadenoma )।
लस्य सकोष्ठग्रन्थ्य र्बुद-कोष्ठक ( cysts ) अकेले या कई मिल सकते हैं। परन्तु तान्तवपटियों के द्वारा यहाँ वे अधिक गह्वरान्वित (loculated) नहीं होते। कोष्ठक में जो तरल पदार्थ भरा रहता है वह लस्य होता है श्लेष्मीय ( mucinous )
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