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विकृतिविज्ञान ३-लोमनाल (श्वासनालस्थ) ग्रन्थ्यर्बुद (Adenoma of the Bronchus) ___ श्वासनालदर्शन ( bronohoscopy ) के सुधारे हुए साधनों की कृपा से नातिदूर काल में आज हम श्वासनालस्थ ग्रन्थ्यर्बुद का विचार करने के लिए समर्थ हो सके हैं। अनेक बार होने वाले रक्तष्ठीवन या ऊर्ध्वग रक्तपित्त का आज तक जो कारण अज्ञात था वह अब ग्रन्थ्यर्बुदीय पुर्वगक से प्रकट हुआ है। अर्ध्वग रक्तपित्त में फुफ्फुसों द्वारा प्रसूत रक्त के यक्ष्मा के अतिरिक्त अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें ग्रन्थ्यर्बुद एक है । ब्वायड ने श्वासनालीय ग्रन्थ्यर्बुद से पीडित एक ऐसे रोगी का भी वर्णन किया है जिसने विगत २५ वर्ष तक समय समय पर मुख से विपुल परिमाण में रक्तस्राव किया। श्वासनाल में जितने प्रकार के प्रथमजात अर्बुद मिलते हैं उनमें यह ८ प्रतिशत तक देखा जाता है। पुरुषों की अपेक्षा ये स्त्रियों में अधिक पाये जाते हैं। ये ४० वर्ष की आयु के पूर्व ही होते हैं।
__ ग्रन्थ्यर्बुद बड़े श्वासनाल में एक पुर्वंगकीय वृद्धि (polypoidal grow. th) के रूप में उगता और श्वासनाल के सुषिरक में पोंढ़ता चला जाता है । यहाँ तक कि उसे यह पूर्णतः अवरुद्ध कर लेता है । इस अवरोध के अनन्तर फुफ्फुस का अवपात (collapse ) हो जाता है और उसमें पूयजनक उपसर्ग की सृष्टि हो सकती है। इस अर्बुद का व्रणन कम होता है पर यह रक्तस्रावी अधिक होता है। जिससे कई कई बार रक्त का स्राव होता हुआ देखा जा सकता है। यह अर्बुद घनाकार ( cubical ) कोशाओं से बनता है । इन कोशाओं में स्वच्छ कायारस भरा रहता है। ये कोशा कभी कभी अवकाशिकीय समूहों ( alveolar groups ) में या कभी कभी एक सांकुर प्रवर्द्धनक की तरह वाहिन्यसंधार में विन्यस्त ( arranged ) रहते हैं । ये अर्बुद कहाँ उत्पन्न होते हैं यह अभी निश्चित नहीं किया जा सका है । यह तो कदाचित् सत्य ही है कि वे पचमल ( ciliary ) अधिच्छद में उत्पन्न नहीं होते। वोमक और ग्राहम के विचार से वे फुफ्फुस के भ्रौण अंगारम्भ (foetal anlage) पर निकला करते हैं और उनकी तुलना लाला ग्रन्थियों के अर्बुदों से की जा सकती है। कुछ लोगों का ऐसा विचार है कि वे श्वासनाल की श्लैष्मिक कला में स्थित श्लेष्मग्रन्थियों द्वारा बनते हैं। इनमें कुछ निश्चित मारात्मकता या दुष्टता रहती है। काटने पर कुछ तो पूर्णतः अद्रष्ट या साधारण पाये जाते हैं, कुछ में विना किसी विस्थाय को जन्म दिये केवल स्थानिक भरमार होती है। तीसरे प्रकार में विस्थाय भी बनते हैं पर मारात्मकता निम्न कोटि की ही रहती है। यह सम्भव है कि ये ग्रन्थ्यर्बुद श्वासनालीय कर्कटोत्पत्ति के प्रारम्भ कर्ता ही हों क्योंकि ये ४० वर्ष की आयु के उपरान्त तथा स्त्री को पुरुष की अपेक्षा अधिक होता हुआ देखा जाता है। बहुत से तो बालकों तथा तरुणों में भी यह देखा जा सकता है। बहुधा ग्रन्थ्यर्बुदों को चाकू द्वारा एक शल्यविद् निकाल सकता है पर साध्यासाध्यता अर्बुद कोशाओं की उस मात्रा पर निर्भर करती है जो समीप की ऊतियाँ में भरमार करती हैं।
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