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अर्बुद प्रकरण
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श्वासदर्शक से देखने पर श्वासनालस्थ ग्रन्थ्यर्बुद का एक सुस्पष्ट चित्र दिखलाई देता है । अण्वीक्षण करने से इसमें अधिच्छदीय कोशा मिलते हैं जो समान आकृति के होते हैं और वे एक गर्त्ताणु के किनारे किनारे विन्यस्त ( अनुक्रमित ) होते हैं । पर कभी कभी वे ठोस पुंज भी बना लेते हैं ।
४ — स्थूलान्त्रस्थ ग्रन्थ्यर्बुद ( Adenoms of the Large Interties )
वामभाग में स्थित स्थूलान्त्र तथा मलाशय ( rectum) इन दो स्थलों में अनेक - विध ग्रन्यर्बुद पाये जाते हैं। ये चमकदार लाल रंग के तथा सनाल होते हैं और अतिशीघ्र मारात्मक बनने की प्रवृत्ति रखते हैं । कुछ का यह मत है कि वे सहज होते हैं और स्त्री अथवा पुरुष किसी के भी द्वारा सन्तान में जा सकते हैं । इनमें होने वाले रक्तस्राव के कारण अथवा मारात्मकता की प्रवृत्ति होने से इससे ग्रस्त परिवार नष्ट हो जाया करते हैं । २० वर्ष से ४० वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों को ये होने लगते हैं । इनके कारण तीव्र अतीसार, ऐंठन, सरक्त और साम मल का त्याग होता हुआ पाया जाता है । उदर में शूल रहता है और रोगी का है । स्थूलान्त्रदर्शक द्वारा इन अर्बुदों को देखा जा सकता है प्राचीर को टटोलने पर कुछ भी हाथ नहीं आता ।
भार घटता चला जाता
परन्तु ऊपर से उदर
स्थूलान्त्र के पक्वाशय या अवरोहि भाग में ग्रन्थ्यर्बुद जितने होते हैं उससे अधिक मलाशय में मिलते हैं । कभी-कभी तो समस्त स्थूलान्त्र की श्लेष्मलकला में पुर्वंगकीय परमचय होता हुआ देखा जाता है जिससे असंख्य छोटे-छोटे अर्बुद बन जाते हैं । ऐसा सम्रण स्थूलान्त्रपाक ( ulcerative colitis ) या उग्र अतीसार वा प्रवाहिका में अथवा सहज रूप में देखा जाता है। इन सनाल वृद्धियों में से बड़ी सरलता से रक्तस्त्राव होता है । ये बालकों में बहुत होती हैं। बड़ों में विनाल ग्रन्थ्यर्बुद मिलते हैं जिन पर सूक्ष्म पर लम्बी अंकुरियाँ ( villi ) चढ़ी होती हैं जिनसे खूब रक्तस्राव होता है । ये वृद्धियाँ प्रायः बहुत होती हैं और ये अधिकतर मारात्मक हो जाती हैं । इन अर्बुदों के कारण अन्त्र का अवरोध हो सकता है तथा निरन्तर रक्तस्त्राव होने से रक्ताल्पता भी देखी जा सकती है ।
५—याकृत ग्रन्थ्यर्बुद ( Adenoma of the Liver )
यकृत् का ग्रन्थ्यर्बुद एक ऐसी व्याधि है जो बहुत ही कम दृष्टिगोचर होती है । इसके कारण एक ठोस और लाल रंग का प्रावरित पिण्ड सा प्रकट होता है जो यकृत् में कहीं भी पाया जा सकता है और कभी-कभी तो यकृत् के नीचे भी मिलता है और यकृत् के प्रावर को थोड़ा सा उठा देता है । ये पिण्ड कभी-कभी अकेले ही होते हैं तब उनका आकार कुछ बड़ा होता है । कभी-कभी वे अनेकों होते हैं तब उनका आकार छोटा होता है । अकेले होने तथा धरातल के पास होने पर उन्हें निकाला जा सकता है ।
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