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विकृतिविज्ञान बने विस्थाय क्षकिरण चित्र में जरठतायुक्त ( sclerosing ) तथा अन्य कारणों से विरलतायुक्त ( rarefying ) देखे जाते हैं। अष्ठीला ग्रन्थि के कर्कटों के कारण अस्थीय विस्थाय ७०% तक देखे जाते हैं। अवटुका प्रन्थि के कारण ३७%, स्तन कर्कट से १४% तथा अन्य कारणों से और भी कम मिलते हैं।
__ अष्ठीला के चारों ओर तथा बस्ति के मूल में सिराओं का एक तगड़ा प्रतान (plexus) होता है। वहाँ से कुछ रक्त अधिश्रोणिका सिरा ( ileac vein ) में जाता है जहाँ अधरा महासिरा में होता हुआ फुफ्फुस तक जाता है। कुछ रक्त मस्तिष्कमातृका सिरा ( vertebral vein ) द्वारा करोटि एवं कशेरुकाओं तक जाता है। कर्कट के कोशा इन दोनों ही मार्गों का अवलम्बन कर सकते हैं। बाद के मार्ग से वे जाना अधिक पसन्द करते हैं। पहले मार्ग से फुफ्फुस में सूचम विस्थाय बनते हैं वहाँ से कर्कट कोशा रक्त के साथ मिल कर हृदय में जाते हैं जहाँ से वे प्रगण्डास्थि या उर्वस्थि के शीर्प को जाते हैं। जङ्घास्थि या पशुकाओं तक में विस्थाय ऐसे ही बनते हैं, द्वितीय मार्ग द्वारा श्रोणिस्थ अस्थियाँ, कटित्रिकस्थ कशेरुका या ऊर्ध्व ग्रैविक कशेरुकावा करोटिक अस्थियाँ जैसा कि पहले लिखा जा चुका है विस्थाय के स्थल बनती हैं। तीसरा मार्ग वातनाडी कंचुकों और परिवातीय लसवहाओं का है जो पहले स्पष्ट किया जा चुका है।
___ अस्थीय कर्कटोत्कर्ष के साथ-साथ रक्तक्षय या अरक्तता (anaemia) सदैव मिला करती है रक्त के चित्र में ऋजुरुहों (normoblasts) तथा मज्जकायाणु (myelocytes) बहुलता से पाये जाते हैं। चित्र सितरक्तरहीय अरक्तता ( leuco-erythroblastic anaemia) का होता है। यद्यपि वैकारिक अस्थिभन्न मिल सकते हैं परन्तु अस्थि की सघनता ( जरठता) का होना तथा रैक्लिंगआडसन के शब्दों में उसे कर्कटीय अस्थिपाक (carcinomatous osteitis) का होना अष्ठीलाग्रन्थि कर्कट के अस्थिगत विस्थाय का प्रमुख लक्षण है । नई अस्थि इसमें बना करती है जो प्रायः आध्मायित (छिद्रिष्ट-spongy ) होती है। जब-तब वह ठोस भी हो सकती है। साथ-साथ अस्थि प्रचूषण ( resorption ) भी होता रहता है। क्ष-चित्र देखने से कभी-कभी पैगेटामय ( Paget's disease ) का भ्रम हो जाता है परन्तु भ्रम दूर करने में रक्त चित्र सहायता कर सकता है ।
अष्ठीलाग्रन्थि कर्कट क्योंकर होता है इस पर ईविंग और यंग के दो परस्पर विरोधी मत हैं। ईविंग कहता है कि परमचय, परमघटन या परमपुष्टि के कारण कर्कटोत्पत्ति होती है। साधारण लगने वाली पुरःस्थग्रन्थि की वृद्धि बहुधा दुष्ट रूप धारण कर लेती है या उसमें दौष्टय के सूक्ष्म क्षेत्र देखे जा सकते हैं। यंग का कथन यह है कि कर्कट सदैव अष्ठीला के पश्च भाग में उत्पन्न होता है। इस भाग की परम पुष्टि शायद ही कभी होती हो अतः परमपुष्टि कर्कटोत्पादक मुख्य कारण नहीं हो सकती । ईविंग के मत से इस ग्रन्थि के कर्कटों में से १० प्रतिशत में परमपुष्टि मिलती है। तथा १९ प्रतिशत परमपुष्टि के रुग्णों में अधिक ध्यानपूर्वक देखने से कर्कट मिल सकता है।
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