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अर्बुद प्रकरण अण्वीक्षण पर शिश्नकर्कट पुष्ट अधिच्छदार्बुद प्रकट होता है। उसमें कोशाकोटर बने होते हैं। साथ ही सुस्पष्ट शाङ्गग जैसा कि प्रथम श्रेणी के कर्कटों में देखा जाता है मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य विभिनित प्रकार भी मिल सकते हैं। शिश्नमुण्ड की स्वाभाविक आकृति में कितना ही परिवर्तन आ जाने पर भी मूत्रत्यागप्रक्रिया यथावत् चलती रहती है।
इसके कारण उत्तरजात वृद्धियाँ वंक्षणीय लसग्रंथकों में होती हैं जो आगे चलकर अन्य सुदूरस्थ अंगों में भी देखी जा सकती हैं।
४-वृषण कर्कट
यह चिमनी में काम करने वाले श्रमिकों में हो जाता है। पैराफीन पर काम करने वालों को भी हो सकता है।
(११) स्त्रीप्रजननाङ्गीय कर्कट १-बीजकोशीय कर्कट (Ovarian Carcinoma)
प्रथमजात और उत्तरजात दो प्रकार के बीजकोशीय कर्कट होते हैं। इन दोनों का वर्णन हम नीचे दे रहे हैं :
प्रथमजात-बीजकोषों की अधिकांश वृद्धियाँ कोष्ठीय (cystic ) होती हैं। उनमें भी कोष्ठग्रंथिकर्कट (cystadeno carcinoma) प्रमुखतया मिलता है। क्योंकि कोष्ठग्रंथ्यर्बुद में दुष्टता बहुत दूत वेग से लगती है। जितने कोष्ठीय कर्कट लस्य कोष्ठग्रंथ्यर्बुद से बना करते हैं उतने कूटश्लेष कोष्ठग्रंथ्यर्बुद ( psuedomucinous cystadenoma ) से नहीं बनते। अन्य ग्रंथियों में जिस प्रकार के कर्कट बनते हैं वैसे ही यहाँ भी बनते हैं। ग्रंथिकर्कट खास करके बनता है। यह कोष्ठीय तथा अंकुरीय (papillary ) दोनों प्रकार का देखा जाता है। इसमें श्लेषाभ विहास भी हो जाता है। साधारण कर्कट बहुधा कोष्ठीय पर कभी-कभी सघन भी होता है। प्रसर कर्कट सदैव सघन होता है। बीजकोशीय कर्कट सदा ४५ से ५५ वर्ष की आयु तक होता है। कभी-कभी यह बहुत पहले भी देखा जा सकता है। ५० प्रतिशत रोगियों में बीजकोशीय कर्कट दोनों ओर मिलता है। एक ओर कर्कट उत्पन्न होने पर लसधारा द्वारा दूसरी ओर विस्थाय ही सम्भवतः इसका कारण होता है। साथ ही साथ प्रायः जलोदर भी रहता है जिसमें तरल रक्त वर्ण का होता है । इस तरल में कर्कट कोशा भी देखे जा सकते हैं। जलोदर का कारण उदरच्छद में विस्थाय बनना है। ८० प्रतिशत रोगियों में ये विस्थाय बनते हैं। साथ ही प्रसर उदरच्छदीय कर्कटोत्कर्ष (diffuse peritoneal carcinoma ) भी देखने में आती है। ग्रन्थीय विस्थाय पहले-पहल कटिप्रदेशस्थ लसग्रन्थकों में बनते हैं। वहाँ से वे ऊपर या नीचे की ओर लस्यशृंखला द्वारा बढ़ते हैं। रक्तधारा द्वारा आगे विस्थाय यकृत् और फुफ्फुस तक चले जाते हैं। प्रत्यक्ष प्रसार द्वारा गर्भाशय नलिकाओं में भी विस्थाय बन सकते हैं। गर्भाशय के अन्तश्छद पर भी विस्थाय देखे जा सकते हैं।
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