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अर्बुद प्रकरण
७८३ कारण चूचुक से रक्तयुक्त स्तन्य निकलना इस रोग का महत्व का लक्षण है। कभी कभी यही प्रणालिकीय कर्कट में परिणत हो जाता है।
ग्रन्थ्य र्बुद
( Adenoma) ग्रन्थ्यर्बुद एक साधारण या अदुष्ट अधिच्छदीय अर्बुद होता है जिसकी सम्पूर्ण रचना उस ग्रन्थि के समान या उस ग्रंथि जैसी होती है जिससे कि यह उत्पन्न हुआ करता है। परन्तु यह जो वर्णन दिया गया है वह पूर्ण नहीं समझ लेना चाहिए । बहुत से ग्रन्थ्यर्बुद अर्बुद न होकर स्थानिकपूरक परमचय ( localised com. pensatory hyperplasia) के ही उदाहरण मात्र होते हैं जैसे यकृत् का एक भाग नष्ट होने पर जो नई ऊति का पुंज उत्पन्न होता है वह धरातल तक बढ़ आता है और भूल से उसे ग्रन्थ्यर्बुद समझ लिया जाता है पर वास्तव में वह पूरक परमचय ही होता है।
वास्तविक ग्रन्थ्यर्बुद सदैव प्रावरित ( encapsulated ) हुआ करता है। रचना की दृष्टि से ग्रन्थ्यबुंद असंख्य नालिकाओं या गर्तिकाओं ( tubules or acini) से युक्त होता है। ये नालिकाएँ या गर्तिकाएँ ठीक वैसी ही होती हैं जैसी कि मूल ग्रन्थि में देखी जाती हैं। इन नालिकाओं और गर्तिकाओं को आस्तरित करने वाले कोशाओं में कुछ अंश तक परमचय हुआ रहता है इस कारण उन कोशाओं का एकाधिक स्तर वहाँ पर प्रायः देखा जाता है । अंकुराबंद की तरह ग्रन्थ्यर्बुद में अधःस्तृत कला संलग्न ( intact ) होती है। संयोजी ऊति को मात्रा कहीं अधिक और कहीं कम देखने में आती है। जब संयोजी ऊति बहुत अधिक होती है तो अर्बुद को ग्रन्थ्यर्बुद मात्र न कह कर संयोजी ग्रन्थ्यर्बुद (fibroadenoma) कहा करते हैं। ___ग्रन्थ्यर्बुद प्रायः सदैव उन ग्रंथियों से ही उत्पन्न होते हैं जिनकी स्थिति पहले से ही तथा स्वाभाविकतया शरीर में हुआ करती है । वे अपना विस्तार शनैः शनैः करते हैं। उनमें प्रावरण और मूलग्रन्थि से पृथकता स्पष्टतया दिखलाई देती है । इस प्रकार वे स्थानिक व्रणशोथात्मक परमचयों से भिन्न होते हैं क्योंकि वे मूलग्रन्थि से पूर्णतः सम्बद्ध होते हैं और उनमें प्रावरण नहीं हुआ करता। ग्रन्थ्यर्बुद जब किसी श्लेष्मलकला से उत्पन्न होते हैं तो उनका स्वरूप चर्मकील से मिलता-जुलता होता है इस कारण कोई महत्त्व का अन्तर चर्मकील (अङ्कुरार्बुद) तथा ग्रंथ्यर्बुद में नहीं पाया जाता । आमाशय तथा अन्त्र में स्थित ग्रन्थ्यर्बुदों में यह देखने को मिलता है। __ ग्रन्थ्यर्बुदों में कहीं-कहीं उनके कोशाओं में उदासर्गी शक्ति (secreting power) पाई जाती है। जैसे श्लेष्मल ग्रंन्थियों के ग्रन्थ्यर्बुदों के कोशाओं से श्लेष्मा का नाव होता है। इसी प्रकार प्रणालीविहीन ग्रंथियों द्वारा जो न्यासर्ग निकलते हैं वे ही उनके ग्रंथ्यर्बुदों से निकलते हैं जिसके कारण अन्तःस्रावी सन्तुलन सम्पूर्ण शरीर का आन्दो.
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