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अर्बुद प्रकरण
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५–पित्ताशयस्थ अङ्कुरार्बुद ( Papillomata of the Gallbladder )
वैसे पित्ताशय में साधारण अर्बुद साधारणतया कम उत्पन्न होते हैं और अगर होते भी हैं तो उनमें अङ्कुरार्बुद की ही प्रधानता रहती है । ये अंकुरार्बुद पित्ताशय की श्लेष्मल कला से एक साथ कई प्रकट होते हैं । जब पित्ताशय की कला चिरकाल से शोथयुक्त होती है तो उसमें अंकुरीय पुंज (papillary masses) बहुत देखे जाते हैं । कभी कभी तो सम्पूर्ण श्लेष्मलकला में अंकुरीयोत्कर्ष ( papillomatosis ) व्याप्त हो जाता है । परन्तु इन अतीव क्षुद्र अंकुरों को अर्बुद मानें या अर्श वा पुर्वंग (polyhs ) या व्रणशोथ यह एक प्रश्न है । आगे चल कर यही दुष्ट हो जाते हैं और ग्रन्थिकर्कट को जन्म देते हैं ।
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६ - वृक्कमुखस्थ अङ्कुरार्बुद ( Papilloma of the Renal pelvis )
यह मृदु साङ्कुर और अति कोमल अर्बुद होता है जो बस्तिस्थ अङ्कुरार्बुद से मिलता जुलता है । यह वृक्कमुख के किसी भी भाग में उत्पन्न हो सकता है परन्तु साधारणतया यह गवीनी मुख के समीप या गवीनी के ऊर्ध्व भाग में ही उत्पन्न होता है । इसके द्वारा अवरोध उत्पन्न हो सकता है जिसके कारण उदवृक्कोत्कर्ष बन जा सकता है । वैसे तो अंकुरार्बुद एकल ( single ) होते हैं पर कभी कभी वे अनेक (multiple ) हो जाते हैं । उसका कारण यह है कि एक ही अर्बुद के कुछ सूत्र टूट कर श्लेष्मल कला में दूसरे दूसरे स्थानों पर बस्तिस्थ अंकुरार्बुदों की तरह उग आते हैं । इस प्रकार से उत्पत्ति होते होते सम्पूर्ण श्लेष्मलकला ऐसी हो जाती है जैसी कि बालों से युक्त भेड़ की खाल । यहीं से बस्ति को उपसृष्ट करने का भी उपक्रम चल सकता है । अंकुरार्बुद अति शीघ्र रक्तस्त्रावकारी होते हैं इस कारण वेदनाविहीन रक्तमेह इस रोग का प्रधान और एकमात्र लक्षण देखा जाता है । जब गवीनी भी रोगाक्रान्त हो जाती है तो शूल भी साथ साथ मिल सकता है । उस दशा में वृक्कल एक अति कष्टदायक घटना के रूप में देखा जा सकता है ।
साधारण अंकुरार्बुद की दुष्ट अर्बुद में परिणति वृक्कों से असम्भव घटना नहीं बल्कि यह तो प्रायशः होने वाली और
स्थिति है ।
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- शिश्नस्थ अङ्कुरार्बुद ( Papillomata of the Penis )
शिश्न में अर्बुद प्रायः बहुत कम मिलते हैं । अदुष्ट या साधारण अर्बुदों में अंकुरार्बुद भी पाया जाता है जो अधिक अवस्था के व्यक्तियों में होता है । यह प्रायः शिश्नमुण्ड से निकलता है और आगे चलकर कर्कट में परिणत हो जाता है । कर्कट बनने के पूर्व तक उसमें वंक्षणस्थ ग्रन्थियाँ फूलती नहीं ।
जिन लोगों की मेदूचर्म ( foreskin ) बड़ी और गन्दी हो वहाँ तथा उष्णवात से पीडितों में शिश्न नेमिका ( corona glandis ) के पीछे चर्मकील ( warts ) भी देखे जाते हैं ।
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लेकर बस्ति तक कोई देखी जाने वाली वस्तु