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विकृतिविज्ञान
कभी प्रणालिका और गर्ताणु दोनों ही देखे जा सकते हैं । स्तनकर्कटों का वर्गीकरण अभी तक असन्तोषजनक है ।
स्तन कर्कट का प्रसार
स्तन कर्कट के कोशा भरमार करके या लसधारा से या रक्तधारा से अपना प्रसार किया करते हैं | भरमार के द्वारा कर्कट कोशा सम्पूर्ण स्तन में फैलते हैं । वे ऊति अवकाशों में जो स्नेह कोशाओं और संयोजी ऊति के कोशा पुंजों के बीच में रहते हैं भर जाते हैं जैसा कि अश्मोपम कर्कट में देखने में आता है । इसी के कारण गम्भीर प्रावरणी और त्वचा प्रभावित होती है । ग्रन्थिक कर्कट तथा प्रणालिकीय कर्कट अधिक भरमार नहीं करते । अण्वी चित्र से सम्पूर्ण स्तन की गहराई देखने से ज्ञात होता है कि अश्योपम कर्कट आधे से अधिक लोगों में उरश्छदा पेशी प्रभावित होती है यद्यपि स्थूल रूप से यह कहना कठिन पड़ता है कि ये पेशियाँ प्रभावित हो चुकी हैं । इसीलिए शस्त्र कर्म करते समय इस पेशी को भी अधिक से अधिक निकाल दिया जाता है ।
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लधारा के द्वारा कर्कट कोशा कुछ दूर तक ले जाये जाते हैं । यह प्रसार दो प्रकार से होता है । कर्कट कोशा लसवहाओं के किनारे-किनारे उगते हैं । इस पद्धति को लस्य अतिवेधन (lymphatic permeation ) हैण्डले कहता है । दूसरा ढंग यह है कि अन्तःशल्यों के रूप में अर्बुद कोशा लसधारा में आते हैं। ऐसा लगता है कि अन्तःशल्यता यहाँ अतिवेधन की अपेक्षा अधिक सफलता प्राप्त करती है । पहले अतिवेधन को प्रमुख स्थान दिया जाया करता था परन्तु आज वैसा स्थान पाने के लिए उसके पास कोई विशेष कारण नहीं रहा । कर्कट कोशा कक्षास्थ लसग्रन्थकों में रोग के आरम्भिक काल में ही पहुँच जाते हैं ऐसा अश्मोपम कर्कट में अधिक देखने में आता है । शस्त्रकर्म के समय ६० प्रतिशत रुग्णों के कक्षास्थ लसग्रन्थक प्रभावित इसी कारण देखे जाते हैं । फुफ्फुसान्तरालीय लसग्रन्थकों में भी प्रभाव कभी-कभी तो कक्षास्थ ग्रन्थकों के पूर्व ही देखने में आता है। जब इन ग्रन्थकों में प्रभाव हो जाता है। तब शल्यशास्त्र उसकी चिकित्सा करने में अपने को पूर्णतः असमर्थ अनुभव करने लगता है । इसी से इस रोग की साध्यासाध्यता इन ग्रंथकों के प्रभावित वा अप्रभावित होने पर निर्भर करती है । ग्रंथिकर्कट तथा प्रणालिकीय कर्कटों में लसग्रन्थकीय प्रभाव नहीं होता पर दुःख की बात तो यह है कि ये दोनों कर्कट बहुत कम मिलते हैं । गम्भीर प्रावरणी के ऊपर छाये हुए लसवाहिनीय चक्र ( plexus of lymphatics) में कर्कट कोशा भर जाते हैं। पेशीय वितान ( muscular apponeuroses ) तथा गम्भीर प्रावरणी के तलों के मध्य में वक्षीय कर्कट फैलता है । शस्त्रकर्मोपरान्त जो कुछ गाँठे चर्म में दिखती हैं उनका मूल इसी क्षेत्र में होता है । गहरी लसवाहिनियों में जब अभिलोपन हो जाता है तो लसावरोध के कारण त्वचा में लसीय शोफ हो जाता है । पर अधिचर्म ( epidermis ) में कहीं केशमूल होते हैं और कहीं स्वेदग्रन्थियाँ | इससे यह शोफ सर्वत्र एक सा न होकर कहीं उसमें गर्त पड़ जाता है और कहीं फूल जाता है । इससे नारंगी का सा दृश्य ( peau d' orange ) स्तन में देखने
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