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अर्बुद प्रकरण श्छद सदैव न्यासर्गिक प्रभाव में रहता है और न्यासर्गिक प्रभाव आघातजन्य प्रभाव की अपेक्षा कर्कटोत्पति में अधिक वजनी दिखाई पड़ता है। स्त्रीसान्द्रव के प्रयोग से एक चूहे की गर्भाग्रीवा में कर्कट होते देखा गया है। यह भी हौफबौअर के मत को ही सिद्ध करता है। जिस चुहिया में प्रयोग द्वारा यह कर्कट उत्पन्न किया जाता है वह स्तन कर्कट की प्रतिरोधी होती है। यह कर्कट रजोनिवृत्तिकाल के उपरान्त होता है। रजोनिवृत्ति काल में पीतपिण्डीय न्यासर्ग ( progesterone ) नहीं रहता तब तो स्त्रीमदि (oestrin ) ही मिलती है। यह कर्कट उन स्त्रियों में भी देखा जाता है जिनको प्रसव शस्त्रकर्म (सीसेरियन सैक्शन ) द्वारा कराया जाता है अर्थात् जहाँ ग्रीवा के आघात का कोई अवसर ही नहीं आता। ब्वायड ने एक ऐसी स्त्री में भी यह कर्कट देखा था जिसका प्रसव शस्त्रकर्म द्वारा १० वर्ष पूर्व हुआ था। इन सब प्रत्यक्ष उदाहरणों से यह ज्ञात होता है कि न्यासर्ग इस कर्कट की उत्पत्ति में अधिक और महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं। __ प्रत्यक्ष देखने से गर्भाशयग्रीवाकर्कट दो प्रकार का मिलता है। एक अंकुरीय प्रकार और दूसरा अन्तराभरित प्रकार । अंकुरीय प्रकार ( papillary form ) में एक बड़ा कवकान्वित पिण्ड बन जाता है जो योनिगुहा की ओर निकला हुआ रहता है और ऐसा लगता है मानो वह गर्भाशयग्रीवा के बाह्य ओष्ट द्वारा उत्पन्न हुआ हो। इस प्रकार का कर्कट गहराई में नहीं होता। मैथुन के पश्चात् रक्तस्राव इस रोग का महत्त्वपूर्ण लक्षण है। अन्तराभरित प्रकार (infiltrating form) का कर्कट बहुत अधिक पाया जाता है । इसमें धरातल पर उठी हुई कोई वृद्धि नहीं दिखाई देती बल्कि वृद्धि गहरी अति में घुसी हुई और अन्तरौष्ठ ( internal os) की ओर अधिक होती है। इससे ग्रीवा में कठिनता और वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार के कर्कट में पर्याप्तकाल तक कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। आगे चलकर ऊतिनाश और निर्मोचन (sloughing ) होने लगता है जिससे ग्रीवा विचीरित ( ragged ) हो जाती है और उसमें गुहा बन जाती है। कभी कभी गर्भाशय की कानाल अवरुद्ध हो जाती है जिससे कोई भी स्राव नीचे की ओर नहीं हो पाता और गर्भाशय में पूय भरने लगता है। इस अवस्था को पूयगर्भाशय (pyometra) कहते हैं। लूगोल के तरल ( lugol's solution ) द्वारा अभिरंजित करने पर ऋजु अन्तश्छद का रंग कालबभ्रु ( deep brown) हो जाता है जब कि कर्कटान्वित अन्तश्छद पर कोई रंग नहीं चढ़ता। इसे शीलरपरीक्षा ( Schiller test ) कहते हैं। परन्तु ग्रीवा के अपरदन (erosion ) में भी कोई रंग नहीं चढ़ा करता। इस कारण इस परीक्षण द्वारा बहुत अधिक ज्ञान नहीं हो पाता।
अण्वीक्षण की परीक्षा इस कर्कट के श्रेणी विभाजन करने के सम्बन्ध में कई प्रकार की दुविधाएँ उत्पन्न कर देती हैं। बात यह है कि गर्भाशयग्रीवा में दो प्रकार का अधिच्छद पाया जाता है। अर्थात् उसके योनि भाग (portio vaginalis ) में
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