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विकृतिविज्ञान
यह कर्कट बहुत मारक होता है । उसके विस्थाय जल्दी बनते हैं और वे स्थानिक प्रचलन से वृक्क में पहुँचते हैं तथा अधिवृक्क पूर्णतया भी विलुप्त हो सकता है । इस रोग में अधिवृक्क तथा वृक्क की सिराओं पर प्रभाव पड़ता है । इस कर्कट का विस्तार रक्तधारा तथा लसवहा दोनों से होता है । विस्थाय दूर-दूर होते हैं परन्तु फुफ्फुस, यकृत् और मस्तिष्क इसके विस्थाय के प्रधानस्थल हैं । कभी-कभी दूसरी ओर का वृक्क भी प्रभावित हो जाता है । पश्च उदरच्छदीय, आन्त्रनिबन्धनीक और फुफ्फुसान्तरालीय लसग्रन्थियाँ भी इसमें बढ़ जाती हैं। अनुमान के विपरीत विस्थाय अस्थियों में नहीं होते। इसका कारण यह है कि अस्थिविस्थाय वृक्क में कर्कट होने पर बहुधा होते हैं । अधिवृक्क में कर्कट होने का उन पर कोई परिणाम नहीं देखने में आता ।
इस रोग के लक्षणों से अधिवृक्क बाह्यक के कार्यों का पता लग जाता है । ग्लिन का मत है कि बालकों में यह अर्बुद लड़कियों में लड़कों की अपेक्षा पाँच गुना होता है । वयस्कों में बराबर-बराबर मिलता है । बालकों में पुंजननाङ्गों में वृद्धि होने लगती है और उनमें पुरुषत्व के चिह्न बढ़ने लगते हैं । अधिवृक्कजननाङ्गीय सहलक्षण ( adreno genital syndrome) कहा जाता है । लड़कियों में प्रथमनात एवं उत्तरजात दोनों प्रकार के पुरुषत्व के लक्षणों का उदय होता है । उनकी भगशिक्षिका ( clitoris ) बढ़ जाती है । उनके मुँह और शरीर पर केशोद्गम होने लगता है । इस अवस्था को केशोद्गमन ( hirsuties ) कहते हैं । बालकों का लिंग बहुत अधिक बढ़ जाता है पर साथ में षण्ढता भी रहती है। स्त्रियों में प्रजननाङ्ग अपुष्ट हो जाते हैं, अनार्तव और मेदस्विता बढ़ जाती है, स्वर मोटा हो जाता है, दादी और मूँछ खूब उग आते हैं । इन लक्षणों को क्यूशिंग सहलक्षण ( cushing syndrome ) तथा अधिवृक्कजननाङ्गीय सहलक्षण में विभक्त कर दिया गया है । क्यूशिंग सहलक्षण पोषग्रन्थि के पीठरंज्य ग्रन्थ्यर्बुद से मिलता-जुलता है । इसमें पेशी दौर्बल्य, केशोद्गमन, अनार्तवता, षाण्ड्य, त्वचा की अपुष्टि, अस्थिवैरल्य ( osteoporosis ), कभी-कभी निपीडाधिक्य तथा मधुवशि से भो न सुधरने वाला मधुमेह आदि लक्षण पाये जाते हैं। इसके कारण पोषग्रन्थि पीठरंज्य कोशाओं में काचर परिवर्तन हो जाता है तथा उसके कण विलुप्त हो जाते हैं । अधिवृक्कजननाङ्गीय सहलक्षण में केशोद्गमन, पुरुषत्व ( virilism ), पेश्याधिक्य होता है, मधुमेह नहीं हुआ करता । पुरुषों में परिवर्तन बहुत कम देखने में आते हैं । कभी कहीं उनमें स्त्रीत्व के लक्षण देखे जाते हैं । ऐसी अवस्था में उनके मूत्र में स्त्रीजनकतत्व ( oestrogenic material ) मिलने लगता है । निपाधिक्य बहुधा मिलता है पर वह दौरे के साथ होता है । वृक्कों में वृक्काणु
( nephrosclerosis ) मिल सकता है । अर्बुद उच्छेद कर देने पर पुरुषत्व के तथा अन्य सब लक्षण चले जाते हैं और निपीडाधिक्य भी नहीं रहता । इससे यह पता लगता है गया कि निपीडाधिक्य का एक प्रकार अधिवृक्कीय बाह्यक की अतिक्रिया द्वारा भी उत्पन्न होता है ।
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