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विकृतिविज्ञान
नैदानिक तथा वैकारिक दोनों दृष्टियों से विशुद्ध अधिचर्माभ कर्कट से विभिन्न रहता है । उसकी अपेक्षा यह पर्याप्त साधारण होता है, इसकी वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है। तथा इसके कारण प्रादेशिक सग्रन्थियों को कोई उपसर्ग नहीं होता । यह एक ऐसा अर्बुद है जिसका दौष्टय कम होते हुए भी अपेक्षाकृत दूसरों के बहुत कम विभिन्नत होता है । यदि यह नीचे अस्थि तक न पहुँचा हो तो तब यह तेजातु विकिरण द्वारा काबू में आ जाता है । इसका प्रसार बहुत स्पष्ट और निश्चित होता है । कान की लोर से लेकर मुखकोण तक यदि एक रेखा खींच दी जावे तो उसके ऊपर चेहरा, कपोल, नासा, वर्त्म और कानों तक वह रहता है । यह विधि केवल यहीं तक सीमित नहीं रहती अपि तु त्वचा के अन्य भागों में भी देखी जा सकती है । बहुधा कृन्तकविद्रधि एक न होकर अनेक भी होती हैं । जहाँ यह होती है वहाँ की त्वचा का व्यवहार ऐसा हो जाता है कि वहाँ अन्य कई विधियाँ बन जा सकें ।
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यह भी है कि पड़ता है तथा
कृतविद्रधि उन देशों में बहुत देखी जाती है जहाँ सूर्य की धूप असह्य हो उठती है । आस्ट्रेलिया एक ऐसा ही देश है जहाँ वायु में बाप्प की कमी और प्रखर धूप रहती है इसी कारण यह रोग वहाँ बहुत अधिक मिलता है । ब्वायड का कथन है कि सिडनी के चिकित्सालय के बहिरंग विभाग प्रतिदिन ५० रुग्ण इसी विद्रधि से पीडित देखने में आते हैं। आस्ट्रेलिया में इस व्याधि का कारण वह एक ऐसा देश है जहाँ परिश्रम का कार्य गोरी चमड़ी को करना गोरी चमड़ी सूर्य की धूप की प्रखरता को सहने में अधिक समर्थ नहीं हुआ करती । अन्य देशों में काली या पीली चमड़ी वाले इस कार्य को करते हैं । वह चमड़ी सूर्य से रक्षा करने में समर्थ होती है । इटलीनिवासी के चमड़े में सूर्य afare सामर्थ्य होती है इस कारण इटलीवासियों के रक्त से निवासी को प्रायः यह रोग नहीं देखा जाता है । न्यूजीलैंड के अधिक होता है दक्षिणी भाग में कम ।
धूप को सहने की उत्पन्न आस्ट्रेलियाउत्तरी भाग में यह
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यह विधि गहराई में स्थित ऊतियों का अपरदन करती है । नासा को नष्ट करती है और नेत्रगुहा को समाप्त कर देती है इसी कारण इसे कृन्तक ( rodent ) विद्रधि नाम दिया गया है जो यथानाम तथा गुण सिद्धान्त के अनुरूप है ।
avata चित्र अधिचर्माभकर्कट से कुछ भिन्न देखा जाता है । इसमें गहरे रंगे हुए कोशाओं के ठोस पुंज मिलते हैं जो अधिचर्म तक चले जाते हैं यद्यपि अधिचर्म के साथ उनका कोई सम्बन्ध किसी भी छेद ( section ) में पाया नहीं जाता। इस विद्रधि के वित एक बराबर गहराई में फैलते हैं उनके अग्र फैले हुए तथा मुद्गराकृतिक ( club-shaped ) होते हैं । अधिचर्माभकर्कट या शल्ककोशीय कर्कट में जो कोशा कोटर या शार्ङ्गयता ( cornification ) देखने में आती है वह यहाँ बिल्कुल नहीं होती । जैसे कि अधिचर्म ( epidermis ) के पैठिक कोशा होते हैं ठीक वैसे ही इस विधि के कोशा हुआ करते हैं इसी कारण हीमैटोजायलीन से रँगने पर वे
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