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अर्बुद प्रकरण आमाशयिक कर्कट से ग्रस्त प्राणी में निम्न लक्षण देखे जाते हैं :
(१) अजीर्ण, (२) तुधानाश, (३) उदरशूल, उदर में उदनीरिकाम्ल का अभाव, दुग्धिकाम्ल और रक्त की उपस्थिति, (५) अरक्तता तथा (६) भाराल्पता।
आमाशयिक कर्कट का प्रत्यक्ष दर्शन करने से उसका निम्न स्वरूप देखने में आ सकता है
अ-छत्रक ( mushroom) की तरह एक कोमल, बड़ा और कवकान्वित ( fungating ) पिण्ड जो आमाशय के सुषिरक में पौंढता चलता है।
आ—कभी-कभी उसका उपर्युक्त रूप देखने में न आकर श्लेष्मलकला का कुछ स्थल उठा हुआ होता है जो बहुत शीघ्र व्रणित हो जाता है और उससे रक्तस्राव होने लगता है। इस व्रण के किनारे उठे हुए और गोल होते हैं और इसका व्यास १३ इञ्च तक का हो सकता है। इस प्रकार के कर्कट को उत्खनन ( excavating ) प्रकार कह सकते हैं । साधारण आमाशयिक विद्रधि जो मारात्मक रूप धारण करती है इसी में आती है। यदि इसके धरातल को काटा जावे तो प्राचीर बहुत मोटी हो जाती है, उसमें पीले ऊतिनाश के धब्बे मिलते हैं तथा लस्य धरातल पर कभी-कभी ग्रन्थक भी देखने में आते हैं।
इ-तीसरे प्रकार का कर्कट ऐसा होता है जिसमें आमाशय प्राचीर बहुत स्थलित हो जाती है। यह स्थूलन स्थानिक भी हो सकता है और प्रसर भी। स्थानिक स्थूलन मुद्रिकाद्वार पर हुआ करता है जहाँ पर दृढ़ सघन ऊति की एक मुद्रिका बन जाती है जो इस द्वार का निरोध कर देती है । इस कारण आमाशय बहुत अधिक विस्फारित हो जाता है। कटा हुआ धरातल अत्यधिक स्थूलित हो जाता है और सघन एवं कठिन पड़ जाता है। प्रसर स्थूलन को अभिघटित आमाशयपाक ( linitis plastica ) भी कहा जाता है । इसके दो नाम और भी हैं, एक चर्मकूपीय आमाशय ( leather bottle stomach ) तथा आमाशयिक यकृद्दाल्यूत्कर्ष ( cirrhosis of the stomach)। इस अवस्था में सम्पूर्ण आमाशय रोगग्रस्त हो जाता है। उसकी प्राचीरें बहुत स्थूल हो जाती हैं तथा उसका आयतन भीतर से घट जाता है। उसका आकार भी छोटा हो जाता है। स्वाभाविक रूप से जो आमाशय १ फुट लम्बा होता है वही अब चार-पाँच इञ्च लम्बा रह जाता है और स्वस्थावस्था में जिसमें सेर सवासेर पदार्थ समा जाया करता है, इस रोग में उसमें आधा पाव सामान रखने को स्थान नहीं मिलता। उसकी प्राचीर १ इञ्च तक मोटी हो जाती है। वह स्तब्ध और अनाम्य ( stiff and rigid ) पाई जाती है । इस आमाशय की श्लेष्मल कला अपने पेशीय स्तर से दृढ़तापूर्वक चिपक जाती है यद्यपि उसमें वणन नहीं हुआ करता । इस रोग में ऊपर से नीचे तक सम्पूर्ण आमाशय रोग से ग्रसित हो जाता है । मुद्रिकाद्वार पर स्थूलन एकदम रुक जाता है तथा ग्रहणी की ओर नहीं बढ़ता। इस रोग में कर्कट कोशाओं को पाना कठिन हो जाता है ।वे अधिकतर इस स्थौल्य में समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण यह अन्य कर्कटों के बराबर दुष्ट नहीं होता।
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