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विकृतिविज्ञान बाधा आ जाती है। इसके कारण रोगी का जीना कठिन हो जाता है। परन्तु आजकल खराब अन्नप्रणाली को निकाल कर नई अन्नप्रणाली लगाने की पद्धति जोर पकड़ रही है।
अन्नप्रणाली दर्शक यन्त्र (oesophagoseope ) की सहायता से कर्कट के प्रत्यक्ष दर्शन किए जा सकते हैं। अपवीक्षण पर यह कर्कट अधिचर्माम प्रकार का मिलता है, परन्तु इसमें अधिच्छदीय मुक्ता नहीं होते। कभी-कभी यह ग्रन्थिकर्कट भी होता है उसकी उत्पत्ति अन्नप्रणाली की श्लेष्मलकला में स्थित ग्रन्धियों से होती है ।
अन्नप्रणालीय कर्कट का विस्तार या विस्थाय समीपस्थ प्रादेशिक लसग्रन्थियों में हुआ करता है। यदि ऊपर के भाग में कर्कट हो तो ग्रैविक एवं फुफ्फुसान्तरालीय लसग्रन्थियों में विस्थाय बनेंगे; यदि मध्यम भाग में हो तो फुफ्फुसान्तरालीय भाग में ही देखे जावेंगे तथा जब अन्तिम भाग में कर्कटोत्पत्ति होती है तो महाप्राचीरा पेशी के नीचे और लसग्रन्थि शृंखला तथा यकृत् में विस्थाय बना करते हैं।
७-आमाशयिक कर्कट (Cancer of the Stomach )
मनुष्यों में महास्रोत में सम्पूर्ण शरीर में उत्पन्न होने वाले कर्कटों का ५० प्रतिशत प्राप्त होता है। उसमें भी आमाशय में कर्कटोत्पत्ति जितनी अधिक देखी जाती है उतनी अन्यत्र नहीं। बृटेन में जितना गर्भाशय कर्कट पाया जाता है उससे तीन गुना और जितना वक्षकर्कट पाया जाता है उससे दो गुना आमाशयिक कर्कट देखने में आता है। यह दरिद्रों का रोग है। धनिक यदि एक इससे पीड़ित होता है तो दरिद्र तीन इससे प्रभावित होते हैं। भौगोलिक दृष्टि से जैकोस्लोवाकिया में यह रोग ६६ प्रति सौ कर्कटों में मिलता है, हालैण्ड में ५५, यू० एस० ए० में ४२ तथा बृटेन में २२ प्रतिशत पाया जाता है। इनका कारण खान, पान और तम्बाकू सेवन की विधियों में अन्तर होना कहा जाता है। बौन के कथनानुसार जावा और सुमात्रा में निवास करने वाली मलय जाति में प्राथमिक आमाशयिक कर्कट प्रायः नहीं ही होता परन्तु वहाँ यकृत् में प्राथमिक कर्कट सबसे अधिक होता है। वहाँ के ही चीनियों में आमाशयिक कर्कट पर्याप्त मिलता है और यकृत् कर्कट नहीं मिलता।
प्रायः ६० वर्ष की आयु में यह रोग होता है । उससे पहले भी देखा जा सकता है।
कर्कट के पूर्व जीर्ण आमाशयपाक ( chronic gastritis ) बहुधा देखा जाता है।
आमाशयिक कर्कट आमाशय के मुद्रिक द्वार पर लगभग ६० प्रतिशत होता है। २० प्रतिशत हार्दिक द्वार के पास लघुवाक्रय ( lesser curvature ) के समीप मिलता है।
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