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अर्बुद प्रकरण
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कारण प्रभावग्रस्त हो जाती हैं। शीर्षण्य गुहा ( cranial cavity ) तक कर्कट पहुँच सकता है । आगे चल कर उत्तरजात वृद्धियाँ फुफ्फुस तथा यकृत् दोनों जगह देखी जा सकती हैं । यह कर्कट तेजहृष ( radio sesitive ) होता है और एक्सरे के प्रयोग से गले की वृद्धि कुछ काल के लिए बिलकुल गल सकती है ।
अण्वीक्षदृष्ट्या अनुवर्ती कोशीय कर्कट अत्यधिक अनघटित ( anaplastic ) होता है उसमें पाण्डुवर्ण के असंख्य कोशाओं का स्तार ( sheet ) देखा जाता है जिसमें अनेक विभजनाङ्क पाये जाते हैं तथा कदरीकरण ( cornification ) का अभाव रहता है ।
लस अधिच्छदार्बुद भी लगभग ऐसा ही होता है परन्तु अन्तर इतना ही है कि अधिच्छदीय कोशाओं के साथ-साथ उसमें अनेक लसीकोशा मिले हुए होते हैं या इतस्ततः फैले होते हैं ।
६ - अन्नप्रणालीय कर्कट ( Oesophageal Carcinoma )
अन्नप्रणालीय कर्कट स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक पाया जाता है पर प्रसनिका के निचले भाग में कभी-कभी कर्कट हो जाता है उसे जब अन्नप्रणालीय कर्कट में गिन लेते हैं तो स्त्रियों में वह अधिक पाया जाता है ।
प्रायः अन्नप्रणाली के मध्यभाग में जहाँ वाम श्वासनाल इसे पार करता है और जहाँ वह कुछ सङ्कुचित रहती है कर्कट उत्पन्न होता हुआ पाया जाता है । मध्यम भाग के पश्चात् अधोभाग में कर्कट अधिक पाया जाता है । अन्नप्रणाली के ऊर्ध्वभाग में कर्कट कम होता है पर प्रसनिका के निचले भाग के कर्कट को सम्मिलित कर लेने पर इस क्षेत्र में अन्य दोनों क्षेत्रों के बराबर कर्कट का अनुपात आ जाता है । मध्यम और अघो अन्नप्रणालीय भागों के प्रक्षोभक खाद्यद्रव्य ऊर्ध्वभाग की अपेक्षा अधिक देर तक रुकते हैं इसी कारण इन स्थलों पर प्रक्षोभाधिक्य के कारण कर्कटोत्पत्ति अधिक हुआ करती है।
अन्नप्रणाली की श्लेष्मलकला में एक छोटी गाँठ के रूप में कर्कट उत्पन्न होता है फिर वह समीपस्थ ऊतियों में भरमार करके चारों ओर से अन्नप्रणाली के एक स्थल वलयाकार भाग में फैलता है जिससे उसका सुधिरक संकुचित होता चला जाता है । इस संकुचित भाग से ऊपर की अन्नप्रणाली का भाग चौड़ा हो जाता है । कुछ काल पश्चात् कर्कट के स्थान पर विद्रधिभवन होता है और कर्कट की वृद्धि कण्ठनाडी में भी वणीभूत हो सकती है । वह व्रण महाधमनी को विदीर्ण करके अपरिमित रक्तस्राव करता हुआ भी रह सकता है अथवा फुफ्फुसान्तराल की ऊतियों में व्रणन होकर सकोथ व्रणशोथ हो सकता है। कभी-कभी वृद्धि समीपस्थ ऊतियों में न फैल कर सुषिरक के अन्दर बढ़ कर मार्गावरोध कर देती है । अन्नप्रणाली के मार्ग में कर्कट के कारण संकोच हो जाया करता है जिसके कारण आहार के निगलने में पर्याप्त
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