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अर्बुद प्रकरण
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अर्थात् कर्कट में सव्रणता, उपसर्ग और ऊतिनाश सदैव मिलता है और उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है क्योंकि व्रणित वृद्धि सदैव उपसर्ग युक्त होती है अतः लसग्रंथियाँ भी दूषित हो जाती है जिससे रक्तस्राव और विद्रधि भवन के कई उपद्रव उठ खड़े होते हैं ।
ग्रीन का कथन है कि यह रोग फिरंगिक सितघटन ( syphilitic leuco. plakia ) द्वारा होता है ।
४ - रसना कर्कट ( Cancer of the Tongue )
यह कर्कट ओष्ठ कर्कट की तरह स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में ही अधिक होता है । यह कहा जाता है कि जब तक जीर्ण स्वरूप का व्रणन या फिरंगीय जिह्नापाक नहीं होता तब तक स्वस्थ जिह्वा कर्कट से प्रभावित नहीं हुआ करती है । यहाँ तक कहा जाता है कि यदि किसी की जीभ पर एक अर्से से व्रण हैं और रक्तपरीक्षण पर वासरमेन प्रतिक्रिया अस्स्यात्मक निकलती है तो कोई कारण नहीं कि उन व्रणों को दुष्ट या मारात्मक न मान लिया जावे ।
जिह्वा को अग्र तथा अनुभागों में एक V के आकार की अंकुरयुक्त रेखा बाँटती है। आगे के दो तिहाई भाग में अधिचर्माभ प्रकार का कर्कट होता है । जिह्वा के किनारे पर कर्कटोत्पत्ति बहुधा हुआ करती है पर जब फिरंगीय व्रण पर दुष्ट वृद्धि जन्म लेती है तो वह जिह्वा पृष्ठ ( dorsum of the tongue ) पर ही होती है । जिह्वा के पिछले एक तिहाई भाग पर कर्कटोत्पत्ति बहुत कम देखी जाती है । उच्च श्रेणी की अधिचर्माभ वृद्धि या अन्तर्वर्ती कोशीय कर्कट ( transitional cell cancer ) होता है ।
रसनाकर्कट प्रत्यक्ष देखने पर आरम्भ में एक स्थानिक काठिन्य ( induration ) से अधिक नहीं प्रतीत होता । आगे चलकर इसमें व्रणन होकर एक चर्मकीलवत् ( warty ) पिण्ड बन जाता है । बहुधा इसमें व्रणन विलम्ब से होता है तथा वह पहले गहराई में अन्तर्भूत अधिक हो जाता है । जो व्रण बनता है वह पर्याप्त कठिन और उठा हुआ होता है और उसके किनारे गोल होते हैं । आगे चलकर जब उसमें उत्तरजात उपसर्ग लग जाता है तो ऊतिनाश, निर्मोचन ( sloughing ) और विनाश होने से वह चित्र समाप्त हो जाता है । अण्वीक्षण पर अधिचर्माभ ( अग्र ३ ) या अन्तर्वर्ती कोशीय ( अनु ३ ) कर्कट या शल्कीय कर्कट का चित्र प्रकट होता है ।
सार्क का प्रसार ओष्ठकर्कट की अपेक्षा अतिशीघ्र होता है । जहाँ जिह्वा पर काठिन्ययुक्त स्थान बना नहीं कि कुछ ही दिनों में वहाँ कर्कट देखा जा सकता है। अतः वैसा होते ही अण्वीक्षीय परीक्षण के लिए उसका एक लव काटकर भेज देना चाहिए | इस त्वरा से रसनाकर्कट के प्रसार के तीन कारण दिये गये हैं । पहला तो यह कि रसना में लसवहाओं की बहुलता होती है । दूसरा यह कि जिह्वा में प्रत्येक
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