________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्बुद प्रकरण
७२३ फुफ्फुस कर्कट बढ़ता है परन्तु यह इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है कि जहाँ ये नहीं पहुँच सकी वहाँ भी यह रोग पर्याप्त पाया जाता है। यह सत्य है कि चूहे या वंटमूष को कण्ठनाड़ी द्वारा कोलतार फूंक देने पर उन्हें फुफ्फुस कर्कट हो जाया करता है। मर्फी तथा स्टम ने चूहे की चमड़ी पर तारकोल पोतकर ६० प्रतिशत एक प्रकार के चूहों में और ७८ प्रतिशत दूसरे प्रकार चूहों में फुफ्फुस कर्कट देखा है।
यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को ३: १ के अनुपात में होता है। कहीं कहीं इसका अनुपात ४: १ भी हो सकता है। __ खानों में काम करने वालों को धातु मिश्रित धूल के कणों में श्वास लेनी पड़ती है इस कारण उनके फुफ्फुसों में कर्कटोत्पत्ति की बड़ी आशंका रहती है। श्लीबर्ग की कोबाल्ट की खानों में जब अनेक व्यक्ति मरने लगे तब १९२२ में अमेरिकन सरकार ने एक आयोग नियुक्त किया यह जानने के लिए कि मृत्यु का कारण क्या हो सकता है । उस आयोग ने यह सिद्ध किया कि मृत्यु का मुख्य कारण फुफ्फुसीय कर्कट था। जो लोग खानों में कार्य नहीं करते थे उनमें यह रोग नहीं देखा जाता था। जो धूल खनिक के सूंघते थे उसमें संखिया तथा अन्य प्रक्षोभक पदार्थों के साथ साथ तेजोसक्रिय पदार्थ भी रहते थे जिनके कारण यह व्याधि उत्पन्न होती थी।
आजकल भारत में और अन्यत्र तम्बाकू का बहुत व्यवहार बढ़ गया है। बीड़ी सिगरेट, सिगार, हुक्का, चिलम अनेकों रूपों में यह पदार्थ सूंघा या पिया जाता है। इसका मल फुफ्फुस के अन्दर संचित होता रहता है इसमें प्रक्षोभक पदार्थ भी होते हैं जिनके कारण यह व्याधि आज पहले से अधिक पाई जाने लगी है। फुफ्फुस में ऐसबेस्टसाधिक्य (asbestosis ) होने से भी कर्कटोत्पत्ति को सहायता मिलती है। सिलिकाधिक्य (silicosis) से भी कर्कट बन सकता है।
फुफ्फुस में कर्कट दो प्रकार का हुआ करता है, एक प्राथमिक और दूसरा उत्तर जात हम यहाँ प्राथमिक कर्कट का ही विचार कर रहे हैं। यह कर्कट सदैव श्वासनलिका ( bronclus ) में होता है और आमाशयिक, वृक्क या अन्य कर्कट नामों की भाँति श्वासनालजनित ( bronchogenic ) कर्कट कहलाता है। उत्तरजात कर्कट अन्यत्र हुए कर्कटों के विस्थाय के रूप में फुफ्फुस के विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट होता है जिसे हम यथा स्थान लिखेंगे।
विकृतशारीर-विकृतशारीर की दृष्टि से कुछ लोग फुफ्फुस कर्कट को उसके ३ उद्भव स्थलों के रूपों में विभक्त किया करते हैं। ये ३ स्थल क्रमशः श्वसनिकीय श्लेष्मलकला, श्लेष्मलग्रन्थियाँ तथा अवकाशिकीय अधिच्छद ( alveolar epithelium ) है। परन्तु इस प्रकार का विभाजन बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता। यदि अर्बुद में श्लेष्मा उपस्थित हो तो वह श्लेष्मल ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न हुआ होगा ऐसा मानकर चलना वृथा है क्योंकि श्वसनिकीय अधिच्छद द्वारा भी श्लेष्मा का निर्माण हो सकता है। यदि अबुंदीय कोशा चिपटे हों तो उसका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि वह फुफ्फुस की अवकाशिकाओं के चिपटित अधिच्छद द्वारा ही बना है वास्तव में
For Private and Personal Use Only