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अर्बुद र
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यहाँ प्रसर, मज्जगतय ( medullary acinar ), ग्रन्थीय, सांकुर, ग्रन्थीय (papilliferous adenocarcinoma ) अथवा अधिचर्माभ ( epidermoid ) किसी भी रूप में कर्कट पाया जा सकता है । फुफ्फुस कर्कटों में ३ प्रकार के कोशा बहुधा मिलते हैं जिनमें रम्भाकारी कोशा ( cylindrical cells ) शल्कीय कोशा तथा लघु गोल अविभिनित या अनघटित कोशा आते हैं । इन कोशाओं के कारण बने भिन्न भिन्न कर्कटों में कोई महत्व का अन्तर यों नहीं हो पाता क्योंकि ये तीनों एक ही फुफ्फुस में पाये जा सकते हैं । इन तीनों में कौन अधिक और कौन कम होता है इसे भी साधिकार किसी ने कहा नहीं है । इन तीनों में कोई महत्त्वपूर्ण विभेदक रेखा भी नहीं है । रम्भाकारी कोशाओं वाला कर्कट ग्रन्थीय कर्कट, शल्कीय कोशाओं वाला कर्कट: अधिचर्मा कर्कट तथा क्षुद्रकोशा वाला क्षुद्रकोशीय कर्कट नाम से पुकारा जाता है । रम्भाकारी कोशाओं से बने अर्बुद को ग्रन्थीय कर्कट कहा जाता है पर कभी-कभी ग्रन्थि की उत्पत्ति नहीं भी हो पाती वहाँ कोशा मज्जकीय पुंजों में समूहित रहते हैं ग्रन्थीयकर्कट ( adenocarcinoma ) में कोशा लम्बे और कुछ-कुछ गोल से होते हैं इनमें स्वच्छ कायारस भरा रहता है । ये ग्रन्थिसम अवकाशों के चारों ओर घिरे रहते हैं । इन अवकाशों में श्लेष्मा ( mucin ) भरा रहता है । श्लेष्मा द्वारा ही कोशा फूल जाते हैं । कोशा एक या अनेक स्तर मोटे होते हैं। उनसे अंकुर निकल सकते हैं । विभजनाङ्क बहुत मिलते हैं । कहीं-कहीं कर्कट कोशा अवकाशिकाओं के. स्थान की पूर्ति कर देते हैं पर अधिक तर तो ये कोशा अवकाशिकाओं में प्रविष्ट हो जाते हैं और वहाँ एक नया स्तर चढ़ा देते हैं । यह सब अनियमित रूप में होता है । वे पूरा-पूरा किसी भी स्थल को नहीं भर पाते हैं। एक महत्वपूर्ण और समझने योग्य बात यह भी है कि कथन में तो ग्रन्थिकर्कट बनता है पर देखने में तथा अण्वीक्षण चित्र मजकीय प्रकार के प्रसर कर्कट से मिलता हुआ होता है जिसे देखकर यह भ्रम हो जाता है कि कहीं यह संकटार्बुद तो नहीं है । इसका कोई प्रमाण नहीं दिया जा सकता कि ये कोशा अवकाशिकीय अधिच्छद से उत्पन्न होते हैं ।
शल्कीयकोशाओं द्वारा निर्मित कर्कट कदरयुक्त ( cornifying ) या कदर रहित दोनों प्रकार का हो सकता है । यह कदाचित् फुफ्फुसनाल ( bronchus ) के अधिच्छद से ठोस पुंज के रूप में निकलता है । कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं कि इस प्रकार का अर्बुद प्रायः यक्ष्मीय विक्षतों के साथ-साथ उत्पन्न होता है । यह बहुत मन्थर गति से बढ़ता है और इसके विस्थाय समीपस्थ लसग्रंथकों तक ही सीमित रहते हैं। इस अर्बुद में ऊतिमृत्यु, गह्वरोत्पत्ति तथा उपसर्ग तीनों मिल सकते हैं ।
क्षुद्रकोशीय प्रकार का अर्बुद फुफ्फुसिक संकटार्बुद से बहुत कुछ मिलता हुआ होता है। इसमें अनघटन अथवा अविभिन्नन ही इसका कारण है । कोशा मृदंगाकृतिक ( spindle celled ), अण्डाकार, गोल या नैकरूपीय ( pleomorphic ) होते हैं । अधिक विचार करने पर इसके कर्कट होने की पुष्टि हो पाती है । इंगलैंड में इसे फुफ्फुसान्तराल का यवकोशीय संकटार्बुद (mediastinal oat-celled sarcoma)
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