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अर्बुद प्रकरण
७११ कारण कर्कट का विस्तार लगातार होता रहता है और उसमें कोई कमी नहीं आती। इन वृद्धियों से बने विस्थायी कर्कटों में भी यह अपजनन पाया जाता है।
साधारण कर्कट-इस वर्ग में अधिकांश कर्कट आते हैं। साधारण कर्कट बहधा उन्नत, बहिरोष्ठी ( everted edges ) विधि के रूप में उत्पन्न होता है जब कि वह किसी त्वचा या अन्य स्वतन्त्र तल पर प्रकट होता है। यदि ऐसा न देखा गया तो फिर एक निश्चित कठिन गाढता युक्त अर्बुद का पुंज पाया जाता है। रचनाशास्त्र की दृष्टि से इसमें कोशासमूह स्तम्भों में रहते हैं जिनके चारों ओर थोड़ा या बहुत संधार रहता है । ये अर्बुद ग्रन्थिकर्कटों की अपेक्षा अधिक दुष्ट होते हैं। इनके द्वारा प्रादेशिक लसग्रन्थियाँ उपसृष्ट हो जाती हैं जिसके कारण कर्कट का विभिन्न अंगों में विस्थापन हो जाता है। संधार की मात्रा भी इन कर्कटों में बहुत भिन्न मिला करती है। कहीं-कहीं तो वह इतनी कम होती है कि कर्कट बहुत मृदु और कोशीय ही दिखलाई पड़ता है इसे मस्तुलुंगाभ ( encephaloid ) या मजकीय ( medullary) कर्कट नाम दे दिया जाता है। यहाँ कोशा गोल होते हैं क्योंकि इनके आकार प्राप्ति के मार्ग में कोई संधारीय बाधा आती नहीं इस कारण उन्हें गोलाभकोशीय कर्कट ( spheroidal cell cancer ) भी कह देते हैं। ये कर्कट प्रायः बहुत अधिक रक्तमय होते हैं जिससे इनमें रक्तस्राव भी होता रहता है। ऊतिनाश अधिक होने से वे कोष्ठकीय रूप भी ले लिया करते हैं। प्रत्यक्ष देखने से सजीव भाग गुलाबी, धूसर या श्वेत रहता है तथा अपजनित भाग गूदासदृश (pulpy )
और रक्तरंजित होता है । यह तो हुआ कम संधार वाले कर्कटों का वर्णन । इनके ठीक विपरीत अधिक संधार वाले कर्कट होते हैं जो छोटे-छोटे परन्तु पत्थर के समान कठिन होते हैं। इनमें तान्तवीय संधार पर्याप्त होता है। इसमें कर्कट कोशाओं के छोटे-छोटे समूह तान्तवसूत्रों के बीच में पड़े रहते हैं । इन्हीं वृद्धियों को अश्मोपम (scirrhus) कर्कट कहते हैं। ऐसे अर्बुद वक्षस्थल में छोटे-छोटे मटर के बराबर तक भी पाये जा सकते हैं परन्तु प्रादेशिक लसग्रन्थियों को प्रभावित करने में समर्थ होते हैं और उनके द्वारा कई स्थानों पर विस्थायित कर्कट पाये जाते हैं। अश्मोपम कर्कट स्त्री-वक्ष में प्रायः मिलते हैं तथा आमाशय में पाये जाते हैं। आँतों में वे बहुत कम मिलते हैं। तान्तवसंधार की अधिकता के कारण वक्षस्थलीय अश्मोपम कर्कट में चूचुक प्रत्याकृष्ट (retract ) हो जाता है तथा स्तन में गढ-गद्वे से (dimpling) पड़ जाते हैं। यहाँ पर कर्कट का इतना अधिक स्थिर होने का कारण तन्तूकर्ष तथा कर्कट कोशाओं की भरमार का समीपस्थ भागों में अधिक होना है । ___ अश्मोपम कर्कट का कटा हुआ तल न्युब्ज (नतोदर ) होता है इसका कारण यह है कि चाकू चल जाने के कारण संधार में उपस्थित तान्तवसूत्र प्रत्याकृष्ट हो जाते हैं। तल का वर्ण आबभ्रु श्वेत होता है, वक्षस्थल में उस पर पारान्ध पीत धारियाँ पड़ी रहती हैं या धब्बे पड़े होते हैं क्योंकि अवरुद्ध प्रणालियों में स्नेहांश संचित हो जाता है। चाकू से काटने पर अर्बुद कठिन (gritty ) लगता है और कच्ची
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