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विकृतिविज्ञान नाशपाती के सदृश कटता है तल हटा देने पर कोशाओं और कणों से युक्त कर्कट यूष मिलता है।
अश्मोपम कर्कट के केन्द्रिय भाग अण्वीक्षण करने पर अकोशीय होते हैं पर परिणाह पर बहुत कोशा मिलते हैं खास कर जहाँ वृद्धि स्नैहिक ऊति पर आक्रमण करती है। प्रायः कोशाओं की कोई विशिष्ट आकृति नहीं होती क्योंकि तान्तव संधार बहुत अधिक संपीडित हो जाता है। अधिक आयु वाले व्यक्तियों में तन्तूकर्ष के कारण इतनी अधिक अपुष्टि हो जाती है कि उसके कारण अपुष्ट कर्कट ( atrophic cancer ) नाम तक दिया जाता है। अश्मोपम कर्कट की विस्थायी वृद्धियों के कारण सघन तान्तव संधार का निर्माण आक्रान्त लसग्रन्थियों में हो जाता है। परन्तु अधिकतर उत्तरजात अर्बुद कोशीय होते हैं और उनका मस्तुलुंगाम प्रकार होता है जिनमें गोलीय कोशा होते हैं। ___ तन्तुकर्कट ( fibro-carcinoma ) नाम से एक अत्यधिक दुष्ट प्रकार का कर्कट भी होता है जिसमें कोशाओं का विन्यास कोई विशेष नहीं होता, न कोई अर्बुद सरीखा पुंज ही देखा जाता है बल्कि कभी-कभी तो ऊति के अन्दर अविशेष कोशाओं की भरमार इतस्ततः हो जाती है। ये कोशा कभी-कभी तो समूह में भी न होकर अकेले ही इधर उधर फैले हुए देखे जाते हैं। इस कर्कट के साथ-साथ जीर्ण व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया के लक्षण भी मिलते हैं। तन्तुकर्कट का उदाहरण आमाशय के प्रसर स्थौल्य में मिलता है जिसमें प्राचीरें अनाम्य ( rigid ) हो जाती हैं और उसका सुषिरक संकुचित हो जाता है । इस स्थिति को लाइनाइटिस प्लास्टीका (linitis plastica ) या चर्मकूपी आमाशय ( leather bottle stomach) कहते हैं। ऐसा विचित्र विक्षत आमाशय के मुद्रिकाद्वार पर बनता है और फिर वह या तो वहीं रहता है या फिर सम्पूर्ण आमाशय में फैल जाता है। स्थौल्य सबसे अधिक उपश्लेष्मलकला ( sabmucosa ) में पाया जाता है और उसका प्रधान कारण जीर्ण व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया हुआ करता है इस प्रतिक्रिया से गोलाणु या छोटे गोल कोशा अकेले या समूह में वहाँ पर देखे जाते हैं। __ प्रसर कर्कटों के अन्य भी प्रकार होते हैं । इनमें एक वक्षस्थल पर होता है। यहाँ पर एक स्फूर्त प्रसर कर्कट स्त्री को उसकी सगर्भता में उत्पन्न हो जाता है और कुछ सप्ताहों में ही उसकी जीवन लीला समाप्त कर दे सकता है। गर्भ के कारण स्तनों की वृद्धि के साथ-साथ रक्ताधिक्य होता है और उसी समय यह भी बढ़ता हुआ देखा जाता है । अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की क्रिया इसका कारण हो सकता है।
उत्तरजात परिवर्तन कर्कट में उत्तरजात परिवर्तनों ( secondary changes ) में दो प्रमुखतया देखे जाते हैं जिनमें एक स्नैहिक विह्रास होता है और दूसरा स्नैहिकनाश (necrosis)। ये दोनों परिवर्तन सभी प्रकार के कर्कटों में होते हैं। इसके कारण अर्बुद में मृदुता आ
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