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अर्बुद प्रकरण
(५) अन्तश्छदार्बुद (Endothelioma ) ( ६ ) शोणोत्पादक ऊतियों के अर्बुद
दुष्ट – लससङ्कटार्बुद (lymphosarcoma ) हाज किनामय ( Hodgkin's disease ) अतिश्वेतरक्तता ( Leukaemia ) बहुमज्जकार्बुद ( multiple myeloma ) साधारण - लसार्बुद (lymphoma )
(७) वात ऊतीय अर्बुद (८) रंगित अर्बुद
चर्मकील वा न्यच्छ ( naevus ) काल्यर्बुद ( melanoma )
१. वातिक अर्बुद
२. पैत्तिक अर्बुद ३. श्लैष्मिक अर्बुद
( ६ ) संयुक्तार्बुद वा भ्रौणार्बुद ( Teratoma )
आयुर्वेद में जो अर्बुदों का वर्गीकरण किया गया है उसके अनुसार हमें निम्न प्रकार के अर्बुद मिलते हैं:
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रक्तार्बुद के लक्षण देते हुए लिखा है
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वातिक अर्बुद - वातिक ग्रन्थि के समान कृष्णवर्ण, कठिन, बस्ति के समान फूला हुआ तोद शूलादि युक्त होना चाहिए ।
पैत्तिक अर्बुद - पैत्तिक ग्रन्थि के समान लाल या पीले वर्ण का दाहयुक्त उष्ण होना चाहिए ।
श्लैष्मिक अर्बुद - श्लैष्मिक ग्रन्थि के समान पाषाणवत् कठिन, देर में बढ़ने चाला, त्वचा के वर्ण का होना चाहिए ।
४. रक्तार्बुद
५. मांसार्बुद
६. मेदसार्बुद
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दोषः प्रदुष्टो रुधिरं सिरास्तु सम्पीडय संकोच्य गतस्तु पाकम् । सास्रावमुन्नह्यति मांसपिण्डं मांसाङ्कुरैराचितमाशुवृद्धिम् ॥ स्रवत्यजत्ररुधिरं प्रदुष्टमसाध्यमेतद्रुधिरात्मकं स्यात् । रक्तक्षयोपद्रवपीडितत्वात् पाण्डुर्भवेदर्बुदपीडितस्तु ॥
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दुष्ट हुआ दोष, रक्त और सिराओं को सम्पीडित और संकुचित करके पाक को प्राप्त हुआ स्त्रावयुक्त मांसांकुरों से भरा शीघ्र बढ़ने वाले मांसपिण्ड को उठाता है । उससे निरन्तर दुष्ट रक्त निकलता रहता है । यह रक्तार्बुद असाध्य होता है । रक्त के बराबर निकलने से रक्तक्षय ( anaemia ) के उपद्रव से अर्बुद पीडित रोगी पाण्डु वर्ण का हो जाता है ।