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अर्बुद प्रकरण
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दुष्टास ( malignant degeneration ) - दुष्टविहास का अर्थ है एक साधारण अर्बुद का दुष्ट अर्बुद में परिणत होना । प्रयोगों द्वारा त्वचा पर तारकोल का निरन्तर लेप करने से पहले एक अङ्कुरार्बुद उत्पन्न होता है । यदि इस अङ्कुरार्बुद पर भी तारकोल पोता जावे तो वह कर्कट में बदल जाता है, तारकोल से बना अंकुरार्बुद यदि जल जावे तो भी कर्कट बन जाता है । इसका अर्थ यह है कि जब किसी साधारण अर्बुद के कोशा के चयापचय ( समवर्त ) में परिवर्तन हो जाता है: तो वृद्धि दुष्ट हो जाती है । स्तन का तन्तुग्रन्थ्यर्बुद संकटार्बुद में परिणत हो जाता है. तथा मूत्रवहसंस्थान का अंकुरार्बुद कर्कट में बदल जाता है । बृहदन्त्र का अंकुरार्बुद भी कर्कट में बदलते हुए देखा जाता है खासकर व्रणशोथात्मक हेतु से उत्पन्न बहुविध अङ्कुरार्बुद ( multiple papillomata ) साधारण रंगीन तिल या ( naevus ) आघात के कारण काल्य संकटार्बुद ( melanotic sarcoma ) में परिणत हो जाता है। कभी कभी शरीर में कोई साधारण अर्बुद उत्पन्न होकर पड़ा रहता है और तब तक प्रकट नहीं होता जब तक कि वह पूर्णतः दुष्ट न हो जावे ।
पूर्वकर्कटिक विक्षत ( precancerous lesions ) – यह कहने का रिवाज चल पड़ा है कि कुछ विक्षत पूर्वकर्कटिक होते हैं । यद्यपि उसके पीछे प्रमाण कोई. खास नहीं रहा करता है । कोई भी जीर्णकालीन विक्षत हो या कोई अतिघटन जो अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की विक्रिया ( dysfunction ) से सम्बद्ध हो जैसे तन्वीयित स्तनपाक या पुरःस्थ ग्रन्थि का जरठिक अतिघटन तो वह पूर्वकर्कटिक अवस्था वाला घोषित कर दिया जाता है । पर सभी जीर्णस्तनपाक कर्कट में परिणत नहीं होते और न सब तृतीयावस्था वाले फिरंगियों की जीभ में कर्कट हो पाता है । अतः 'पूर्वकर्कटिक विक्षत' शब्द अनावश्यक प्रतीत होता है ।
इतना कहा जा सकता है कि जिन अवस्थाओं को पूर्वकर्कटिक अवस्था कहा जाता है वे वे अवस्थाएँ जिनका विधिवत् उपचार न किया गया तथा सावधानी न बरती गई तो अवश्य ही वह कर्कट में परिणत हो सकती हैं । अत्यधिक अधिच्छदीय अतिघटन ( gross epitpelial hyperplasia ). गुरु लसीकोशीय भरमार ( heavy lymphocytic infiltration ) तथा तन्तूत्कर्ष ये सभी मिलाकर उस चित्र को उपस्थित करते हैं जिसकी सावधानी न बरती जाने पर कर्कटोत्पत्ति हो सकती है ।
पूर्वकर्कटिक विक्षतों के दो महत्त्व के उदाहरण दिये जा सकते हैं। इनमें एक तो ओष्ठ का वह शोथ है जिसमें उपअधि त्वचा में ओष्ठ में खूब गोलकोशाओं का अन्तराधान होता है, तथा जिसमें मालपीधियन अंकुर बढ़ बढ़ कर लम्बे होते चले जाते हैं। वे मोटे हो जाते हैं और उनमें विभजनांक ( mitoses ) भी देखने में आते हैं । यह वृद्धि दुष्ट नहीं होती तथा नियमित होती है । यही आगे जाकर दुष्ट वृद्धि में बदल जाती है । दूसरा उदाहरण पैगट चर्मदल ( Paget's eczema ) का स्त्रियों स्तन चूचुक में देखने को मिलता है ।
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५६, ६० वि०
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