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अर्बुद प्रकरण
६६१ मानव य कर्कटकारक हेतु निम्न हेतुओं के कारण कोई स्वस्थ मानव अति-दौष्टय ग्रहण करने में समर्थ हो सकती है:
१. कुल ज प्रवृत्ति ( heredity ) २. आयु ( age ) ३. अनुहृषता ( susceptibility ) ४. आघात ( trauma) ५. जीर्ण पक्षोभ ( chronic irritation ) ६. भ्रौणिकोय अवशेष ( embryonic rests ) ७. तन्वीयन या पुनर्जननीय परिवर्तन ( involutionary or regene
rative changes ) कुलत प्रवृत्ति ( Heredity )-कर्कट स्वयं एक पैतृक रोग नहीं है परन्तु कुलज वृत्ति कर्कटोत्पत्ति में प्रथम स्थान रखती है। मूषकों में कुलज प्रवृत्ति के ही बल पर कर्कटयुक्त नर-मादा संयोगों की पीढ़ियों से ऐसे मूषक उत्पन्न किए जासकते हैं जिनमें तुरंत कर्कटोत्पत्ति की जा सके । इसी प्रकार इसका उलटा भी किया जासकता है और इतने प्रतिरोधक मूषक भी उत्पन्न हो सकते हैं जिनमें कठिनता से ही कर्कटोत्पत्ति हो सके।
__ मनुष्यों में कुलज प्रवृत्ति का विचार करने के लिए वालर ने ६००० कर्कटरोगियों के परिवारों की, वारसिंक ने २४७२ कर्कटरोगियों के परिवार की १९३१ और १९३५ में क्रमशः परीक्षाएं की। इन परीक्षणों से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि कर्कट की उत्पत्ति शीघ्र या देर से होने के लिए कुलज प्रवृत्ति एक महत्व का हेतु है। उन्होंने निम्न अन्य अरिणाम भी प्राप्त किए :
१. सन्तान में कर्कटोत्पत्ति लिंगानुयायी होती है। अर्थात् माता को कर्कट होने पर बेटी में और पिता को कर्कट होने पर पुत्र में कर्कटात्पत्ति होने की अधिक सम्भावना रहती है।
२. कर्कटीय कुलजप्रवृत्ति स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक मिलती है। ___३. कुलजप्रवृत्ति दो भागों में बाँटी जा सकती है । एक वह जो पुरुष और स्त्री दोनों से बराबर सम्बन्ध रखती है तथा दूसरी वह जो केवल स्त्रियों से सम्बद्ध रहती है।
४. कर्कट अंग विशेष में यदि माता वा पिता में पाया जावे तो सन्तान में भी उसी अंग में प्रायः होता हुआ देखा जाता है।
मूषकों में एक विचित्र बात यह देखी जाती है कि यदि एक उच्च कर्कटीय प्रवृत्ति वाले मूपक की सन्तति को अल्पकर्कट प्रवृत्ति वाले मूषक का दुग्ध पिलाया जावे तो यह मूपक बालक अल्पप्रवृत्ति वाला हो जाता है तथा अल्पप्रवृत्ति वाले मूषक को उच्च प्रवृत्ति वाले मूपक का दुग्ध दिया जावे तो उसमें कर्कट की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। यह निस्सन्देह सिद्ध करता है कि दुग्ध के अन्दर कर्कट प्रवृत्ति को कम या अधिक
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