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विकृतिविज्ञान
ऊतिवृद्धि को मन्द करते हैं । इसी अन्तिम गुण की प्राप्ति के लिए ही पुरःस्थ ग्रन्थि के कर्कट को दूर करने के लिए स्टिलबीस्ट्रॉल का उपयोग किया जाता है । इस कार्य के लिए स्टिलबीस्ट्रोल का प्रयोग होने से या तो वह पोषगिकाग्रन्थि के द्वारा अप्रत्यक्षरूप से क्रिया करता है अथवा सीधे वृषणों के कोशाओं में एण्ड्रोजन का स्राव रोकता है। कुछ भी हो पुरःस्थीय कर्कट एक अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के क्रिया वैषम्य ( dysendoerinism ) का एक परिणाम है जिस पर स्टिलबीस्ट्रोल की क्रिया होती है और लाभ भी होता है ।
अन्य अभिकर्त्ताओं का भाग बहुत कम रहता है। विटामीन डी एक सान्द्रव है जिसे नीललोहितातीत किरणें उत्तेजित करके उत्पन्न करती हैं परन्तु इसके द्वारा कर्कट उत्पन्न होता है इसके सम्बन्ध में कोई स्पष्ट प्रमाण अभी तक अप्राप्य है । अन्य वृद्धिकर्ता पदार्थों के बारे में निश्चिति से कुछ यों नहीं कहा जासकता क्योंकि उनकी रसायनिक रचना अभी तक पूर्णतः ज्ञात नहीं है ।
सजीव अभिकर्ता द्वारा कर्कटोत्पत्ति हो सकती है या नहीं इस प्रश्न को पुनः इस युग में उठाया जारहा है और वैज्ञानिक इस खोज में लगे हैं कि कहीं किसी जीवाणु के द्वारा तो यह उत्पन्न नहीं होता है ।
सन् १९११ में पेटन रूस ने एक पक्षी के संकटार्बुद का कोशाविरहित विलयन बनाया और उसे ज्योंही दूसरे पक्षी में प्रविष्ट किया कि उसे तुरत संकटार्बुद उत्पन्न हो गया। इस घटना का सम्पूर्ण कर्कटखोजी प्रयोगशालाओं पर प्रभाव पड़ा और वे किसी ऐसे सजीव तत्व की खोज में निकल पड़े जो मनुष्यों के दुष्ट अर्बुदों का जनक हो । पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली । पक्षियों में २७ प्रकार के अर्बुद पाये जाते हैं जिनमें ११ प्रकार के अर्बुदों के कोशा विरहित पावित ( cell. free filtrates ) बनाए जा सकते हैं । ऐसा लगता है कि इन पावितों में अर्बुद कारक तत्त्व कोई विषाणु (virus ) होगा । इन विषाणुओं के द्वारा पक्षियों में दुष्ट अर्बुदों की उत्पत्ति होती है । उनमें उदांगारों के द्वारा भी अर्बुदोत्पत्ति की जा सकती है ।
स्तनधारी प्राणियों के कई अर्बुद पावितों द्वारा एक से दूसरे में संक्रामित किए जासकते हैं । मनुष्य का अंकुरीय चर्मकील ( papillomatous wart औपसर्गिक माना जाता है । शशकों के ३ अर्बुद औपसर्गिक कहे जाते हैं । इन तीनों के तीन विभिन्न विषाणु रहते हैं । इनमें अंकुरार्बुद का विषाणु शशक में एक प्रतिरोधक शक्ति को उत्पन्न कर देता है । इस अंकुरार्बुद को शोप अंकुरार्बुद ( Shope papilloma ) कहते हैं । यह जब दुष्ट हो जाता है तो फिर उसका पावित द्वारा संक्रमण बन्द हो जाता है 1
सारांश यह है कि जहाँ हमारे पास अन्य प्राणियों पर किये गये प्रयोगों के आधार पर कर्कटजनक कारणों पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है वहाँ हम जहाँ तक मनुष्य और कर्कट का सम्बन्ध है हम अभी तक कुछ भी आगे नहीं बढ़ सके हैं ।
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